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________________ नाशक स्नेह और दानिक वातनाशक दया, विस्मापन, विस्मारवेध विमानस्थान-अ०६.. (५६५) वायुके जीतनेका उपाय। तस्यावजयनम्-स्नेहस्वेदौविधियुक्तौमदनिचसंशोधनानिस्नेहोष्णमधुराम्ललवणयुक्तानितद्वदभ्यवहार्याण्युपनाहनोपवेष्टनोन्मर्दनपरिषेकावगाहनसंवाहनावपीडनवित्रासनविस्मापनविस्मारणानिसुरासवविधानस्नेहाश्चअनेकयोनयोदीपनीयपाचनीयावातहरविरेचनीयोपहिताःशतपाकाःसहस्रपाकाःसर्वशः प्रयोगार्थाबस्तयोबस्तिनियमःसुखशीलताचोत ॥२०॥ उस मनुष्यके शरीरमें-वायुको जीतनेवाली स्नेहन और स्वेदन क्रिया विधिपूर्वक करे । एवम् चिकने, गरम, मधुर, खट्टे लवणयुक्त पदार्थों द्वारा मृदु संशोधन करे। तथा चिकने, गर्म आदि आहार करावे और वातनाशक लेप,बंधन, मर्दन,परिषेक, अवगाहन, संवाहन और पीडन, वित्रासन,विस्मापन,विस्मारण, मद्य और आसव मादिकोंका तथा अनेक वातनाशक द्रव्योंका उपयोग करना चाहिये। एवम् वातनाशक स्नेह और दीपन तथा पाचन एवम् वायुके हरनेवाले रेचक द्रव्योंसे शतपाकी तथा सहस्रपाकी घृतों और तैलोंका सेवन करावे । अथवा वातनाशक द्रव्यों द्वारा सौवार अथवा सहनवार पकाये हुए घृत तथा तैलों द्वारा बस्तिकर्म या अन्य प्रकारसे सुखदायक प्रयोग कर वायुको जीतना चाहिये ॥ २० ॥ पित्तका प्रकोप और जीतनेका क्रम । पित्तलस्यापिपित्तप्रकोपणोक्तान्यासेवमानस्यक्षिपित्तंप्रकोपमापद्यते, तथानेतरौ॥ २१॥ पित्तप्रधान मनुष्योंके शरीरमें पित्तकारक पदार्थोके खानेसे पित्तका शीघ्र कोप होजाताहै तथा वात और कफका कोप इसप्रकार नहीं होता ॥ २१ ॥ तदस्यप्रकोपमापन्नंयथोक्तैर्विकारैःशरीरमुपतपतिबलवर्णसुखायुषामुपघाताय ॥ २२॥ सब पित्तप्रधान मनुष्यके शरीरमें कोपको प्राप्त हुआ पिच शरीरको पित्तके विकारोंसे तपायमान करता है तथा बल, वर्ण, सुख और आयुको भी नष्ट कर डालता है ॥ २२ ॥ तस्यावजयनम्-सर्पिष्पानसर्पिषाचस्नेहनमधश्चदोषहरणमधुरतिसंकषायशीतानाञ्चोषधानामभ्यवहार्याणामुपयोगोमृदुमधु
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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