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________________ (४) चरकसंहिता-भा० टी०। हांसकती है ! सो रोग (वीमारियां) इस आरोग्यताके हरलेनेवाले हैं । आरोग्यता न रहनेसे जीवन और कल्याण (मुख) भी नष्ट ही होजाताहै । इस लिये. यह मनुष्योंक लिये महान् अन्तराय ( भारी विघ्न ) आन उपस्थित हुआ है ॥ १२॥ १३ ॥ १४ ॥ उपायका निश्चय। कास्यात्तेषांशमोपायइत्युक्त्वाध्यानमास्थिताः । अथतेशरणं शक्रंददृशुर्ध्यानचक्षुषा ॥१५॥ सवक्ष्यतिशमोपाययथावदमरप्रभुः । कःसहस्त्राक्षभवनंगच्छेत्प्रष्टुंशचीपतिम् ॥ १६ ॥ सो अव इन रोगाके शांत करनेका क्या उपाय करना चाहिये इसके जाननेके. लिये सब ऋषियोंने ध्यान लगाया, इसके अनंतर उन ऋषियोंने इस विघ्नसे बचा. नेका यत्न इंद्रके पास जानेसे प्राप्त होगा यह अपनी समाधिमें ध्यान करके नान लिया । फिर नेत्र खोलकर सव आपसमें कहने लगे कि इन रोगोंकी शांतिका ठीक २ उपाय हमको देवताओंके पति इंद्र बतलायेंगे, परन्तु उन शचीपति. इंद्रके भवनमें इस उपायको सीखने कौन जावेगा ॥ १५॥ १६ ॥ अहमथेनियुज्येयमतिप्रथमंवचः। भरद्वाजोऽववीत्तस्मादृषिभिःसनियोजितः॥१७॥ .इस आन्दोलनको सुनकर भरद्वाजजीने सबसे पहले कहा कि यह काम मुझे सोपाजाय में इस कार्यको करूंगा इसलिये सव ऋषियोंने इनहीको नियुक्त किया कि आप ही जाइये ।। १७ ॥ ___ भरद्वाजका इंद्रभवन में जाना । सशकभवनंगत्वासुरपिंगणमध्यगम्। ददर्शवलहन्तारंदीप्य. मानमिवानलम् ॥ १८॥ सोऽभिगम्यजयाशीभिरभिनन्यसुरेश्वरम् । प्रोवाचभगवान्धीमानृपाणांवाक्यमुत्तमम् ॥ १९ ॥ ऋषियाले विदा होकर भरद्वाज इंद्रके स्थानमें ( स्वर्गमें ) पहुंचे वहां जाकर देवर्षिगणांक मध्यम सिंहासनपर प्रदीप्त अनिके समान तेजस्वी इन्द्रको देखा। फिर बुद्धिमान् भगवान् भरद्वाजने इंद्रके पास जाकर आशीर्वादादिसे प्रसन्न कर ऋषियों के उत्तम वाक्यांको कयन किया ॥ १८ ॥ १९॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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