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________________ सूत्रस्थान-अ० १. ( ३ ) र्कण्डेयाश्वलायनौ । पारीक्षिद्भिक्षुरात्रेयो भरद्वाजः कपिष्ठलः ॥ ७ ॥ विश्वामित्राश्वरथ्यौ चभार्गवश्च्यवनोऽभिजित् । भार्ग्यः शाण्डिल्यकौण्डिन्यौवाक्षिर्देवलग़ालवौ ॥८॥ साकु'त्यो वैजवापिश्चकुशिको बादरायणः । वडिशः शरलोमाचकाप्यकात्यायनावुभौ ॥ ९ ॥ कांकायनः कैकशेषोधौम्योमारीचिका पौ । शर्कराक्षोहिरण्याक्षो लौगाक्षः पेंगिरेवच ॥ १० ॥ शौनकः शाकुनेयश्च मैत्रेयो मैमतायनिः । वैखानसाबालाखल्यास्तथा चान्ये महर्षयः ॥ ११ ॥ 1 जो ऋषि हिमालय के एकपार्श्वमें इकट्ठे हुए थे उनके नाम लिखते हैं- अंगिरा, जमदग्नि, वशिष्ठ, काश्यप, भृगु, आत्रेय, गौतम, सांख्य, पुलस्त्य, नारद, अंसित, अगस्त्य, वामदेव, मार्कण्डेय, आश्वलायन, पारीक्षित्, भिक्षु, अत्रि, भरद्वाज, कपि'छल, विश्वामित्र, अश्वरथ्य, भार्गव, च्यवन, अभिजित्, गर्ग, शांडिल्य, कौडिन्य नाक्षि, देवल, गालव, सांकृत्य; वैजवापि, कुशिक, बादरायण, वडिश, शरलोमा, 'काव्य, कात्यायन, कांकायन, कैकशेष, धौम्य, मरीचि, कश्यप शर्कराक्ष, हिरण्याक्ष, • लौगाक्ष पैंगि शौनक, शाकुनेय, मैत्रय, मैमतायनि, वैखानस, वालखिल्य, तथा अन्य महर्षिलोग आनकर इकट्ठे हुए ॥ ६ ॥ ७ ॥ ८ ॥ ९॥१० ॥ ११ ॥ ब्रह्मज्ञानस्यनिधयोदमस्यनियमस्यच । तपसा ते जसादीताहूयमानाइवाग्रयः ॥ १२ ॥ सुखोपविष्टास्ते तत्रपुण्याञ्चक्रुरिमां कथाम् । धर्म्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यंमूलमुत्तमम् ॥ १३ ॥ रोगास्तस्यापहर्त्तारः श्रेय सोजीवितस्यच । प्रादुर्भूतोमनुष्याणामन्तरायोंमहानयम् ॥ १४ ॥ .. : . " - यह सब महात्मा ब्रह्मके जाननेमें और इंद्रियों के दमन करनेमें तथा नियमों के 'पालने में समुद्र थे, तप और तेज़के प्रभावसे हवन करनेसे प्रज्वलित अग्निके समान प्रकाशमान होरहे थे । यह सब महात्मा सुखपूर्वक बैठेहुए उस हिमालयके शिख -स्में यह पवित्र कथा कहने लगे कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इनका उत्तम मूल आरोग्यता ही है अर्थात् आरोग्यता रहनेपर ही धर्मादि चतुर्विधं पुरुषार्थकी प्राप्ति
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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