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________________ (५४८) __ चरकसंहिता-भा० टी। . ज्ञानबुद्धिप्रदीपेनयोनाविशतितत्त्ववित् । आतुरस्यान्तरात्मानंनसरोगांश्चिकित्सति ॥१२॥ जिस वैद्यने कारणादि ज्ञान तथा बुद्धिरूप दीपकसे रोगीके शरीरमें प्रवेश नहीं, किया है वह वैद्य रोगोंकी चिकित्सा नहीं कर सकता ॥ १२ ॥ सर्वरोगविशेषाणांत्रिविधंज्ञानसंग्रहम् । यथाचोपदिशन्त्याप्ताःप्रत्यक्षंगृह्यतेयथा ॥१३॥ येयथाचानुमानेनज्ञेयास्तांश्चात्युदारधीः। भावास्त्रिरोगविज्ञानेविमानेमुनिरुक्तवान् ॥ १४ ॥ इतिश्रीमच्चरकसंहितायां त्रिविधरोगविशेषविज्ञानीय नामचतुर्थोऽध्यायः॥ ४॥ अब अध्यायका उपसंहार करते हैं कि त्रिविध रोगविशेषविज्ञानीयअध्याय सम्पूर्ण रोगविशेषको जाननेके लिये तीन प्रकारके शानका संग्रह जैसे आप्त पुरुष उपदेश करते हैं। जैसे प्रत्यक्षका ग्रहण होता है । जो विषय अनुमान द्वारा जैसे जानेजाते हैं। इन सब भावोंको उदार बुदि भगवान् आत्रेयजीने वर्णन किया है॥ १३ ॥१४॥ इति श्रीमहार्षिचर० वि० स्था० भा० टी० त्रिविधरोगविशेषविज्ञानीयविमान नाम चतुर्थोऽध्यायः ॥४॥ पञ्चमोऽध्यायः। . अथातःस्रोतोविमाननामाध्यायं व्याख्यास्याम इति हस्माह भगवानात्रेयः। अब हम स्रोतोविमाननामकअध्यायकी व्याख्या करते हैं। इस प्रकार भगवान् आत्रेयजी कथन करने लगे। स्रोतोंका वर्णन.। . . .. यावन्तःपुरुषेमूर्तिमन्तोभावविशेषास्तावन्तएवास्मिन्स्रोतसां. प्रकारविशेषाः,सर्वेभावाहिपुरुषेनान्तरेणस्रोतांस्यभिनिवर्तन्ते क्षयवानगच्छंति। स्रोतांसिखलुपारणाममापद्यमानानांधातुः ।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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