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________________ (४४४) चरकसंहिता-भा० टी०। चास्यनोपशेरतेतद्विपरीतानिचोपशेरतइतिश्लेष्मगुल्मः॥१०॥ उस कुपित हुए कफको वायु, आमाशयमें ले जाकर चक्कर देकर गोलाकार बना देतीहै और वातगुल्ममें कहेहुए पीडाके प्रकारोंको उत्पन्न करतीहै । फिर यह कफसे बना हुआ गुल्म-शीतज्वर, अरुचि, अन्नका अविपाक, अंगमर्द, रोमहर्ष, हृद्रोग, वमन, निद्रा, आलस्य, शरीरका गीलासा होना, गुरुता और शिरमें शूल इन सबको प्रगट करताहै तथा वह गुल्म-स्थिर, भारी, कठिन, गाढतायुक्त तथा सुप्तसा होता है । उस गुल्मके बढनेसे-कास, श्वास, प्रतिश्याय, राजयक्ष्मा यह उत्पन्न होते हैं एवम् त्वचा, नख, नेत्र, मुख, मूत्र, मल, ये सब सफेद वर्णके होतेहैं। और निदानमें कहे हुए कारणोंसे रोगका बढ़ना तथा तद्विपरीत कारणोंसे शान्त होना यह सव कफजन्य गुल्मके लक्षण होते हैं ॥ १० ॥ निचयगुल्मका वर्णन । त्रिदोषहेतुलिङ्गसन्निपातातुसान्निपातिकंगुल्ममुपदिशन्तिकु शलाः । सप्रतिषिद्धोपक्रमत्वादसाध्योनिचयगुल्मः ॥ ११ ॥ जिस गुल्ममें गुल्मदोषोंके कारण और लक्षण मिलतेहों उस गुल्मको बुद्धिमान बैद्य सन्निपातसे उत्पन्न हुआ मानते हैं । सन्निपातके गुल्ममें चिकित्साकी विरोधता "पडनेसे इसको असाध्य गुल्म जानना ॥ ११ ॥ रक्तगुल्म। शोणितगुल्मस्तुखलुस्त्रियाएवभवतिनपुरुषस्य । गर्भकोष्ठातैवागमनवैशेष्यात् ॥ १२ ॥ रक्तजनित गुल्म केवल स्त्रियोंकोही होताहै । पुरुषोंको नहीं होता क्योंकि गर्भ कोष्ठ और मासिक ऋतुका बहाव स्त्रियोंके ही होनसे रक्तगुल्म भी स्त्रियोंके ही होता है ॥ १२ ॥ रक्तगुल्मकी उत्पत्ति के कारण। पारतन्त्र्यादवैशारद्यात्सततमुपचारानुरोधाद्वेगानुदीर्णानुपरुन्धन्त्याआमगर्भवापिअचिरात्पतितेतथाप्यचिरप्रजातायाऋतौवावातप्रकोपनान्यासेवमानायावातप्रकोपमापद्यते ॥१३॥ स्त्रियें परतंत्र होनेसे और शारीरिक विषयमें मूर्ख होनेसे निरन्तर अपने घर अथवा संतान आदिके काममें लगी हुई रहती हैं ओर मल मूत्रादिके आयेहुए वेगोंको रोकलताह अतएव वेग आदिकोंके रोकनेसे, कच्चे गर्भके पात होजानसे अथवा प्रस्त
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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