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________________ निदानस्थान-अ० ३. (४४१) प्रकुपित वातसे गुल्मकी उत्पत्ति । सप्रकुपितोमहास्रोतोऽनुप्रविश्यरोक्ष्यात्कठिनीकृत्याप्लुत्यपिण्डितोऽवस्थानंकरोतिहिदिवस्तौपार्श्वयोनाभ्यांवासशूलमुपजनयति । सवातजन्याननेकविधान्वेदनाविशेषाञ्जनयति ग्रन्थींश्चानेकविधान् । पिण्डितश्चावतिष्ठतेसपिण्डितत्वाद्गु. ल्मइत्युपचयंते ॥५॥ फिर वह कुपित हुई वायु महास्रोतोंमें अर्थात् आमाशय और पक्वाशय आदिमें प्रवेश करके अपने रूक्षतादि गुणोंसे कठोरताको प्राप्त हो चक्कर खाकर एक गोलमोल गोलेको उत्पन्न करदेतीहै वह गोला-वस्ती अथवादोनों पंसवाडे तथा नाभिमें पीडाको उत्पन्न करताहै ।तथा वातजनित और भी अनेक प्रकारके रोगोंको उत्पन्न करताहै तथा अनेक प्रकारकी ग्रंथिये गोलेकी समान वनकर रहतीहैं वह ग्रंथिये भी गुल्मनामसे ही उच्चारण कीजातीहैं ॥५॥ वातगुल्मके लक्षण । समुहुरादधातिमुहुरल्पत्वमापद्यतेअनियतवेदनाचलत्वाद्वायोः पिपीलिकासंप्रकीर्णइवतोदस्फुरणायामसङ्कोचहर्षप्रलयोदयबहुलस्तदातुरश्चसूच्येवशकुनेवचातिविद्धमात्मानमन्यतेऽपि चदिवसान्तज्वर्यतेशुष्यतिचास्यास्यमुच्छासश्चोपरुध्यतेहृष्यन्तिरामाणिवेदनाया:प्रादुर्भावप्लीहाटोपान्त्रकूजविपाकोदाव गङ्गमर्दमन्याशिरःशंखशूलबनरोगाश्चैनमुपद्रवन्तिकृष्णारुणपरुषत्वङ्नखनयनवदनमूत्रपुरीषश्चभवतिनिदानोक्तानिचास्यनोपशेरतेविपरीतानिचोपशेरतइतिवातगुल्मः॥६॥ वह गोला वायुकी चलगति होनेसे कभी वडा, कभी छोटा प्रतीत होताहै ।इसमें . पीडा भी कभी अधिक और कभी कम होतीहै । और चींटिओंके काटनेके समान तोद होताहै और स्फुरण एवम् फैलाव तथा संकोच और प्रकटता तथा कभी नष्ट 'प्रायसा हो जाना एवं फिर प्रकट रूपसे दीखना यह लक्षण होतेहैं । पीडा होनेके समय रोगीको सूई चुभने एवम् शूल चुभनेके समान प्रतीत होना, सायंकालमें ज्वर चढना, मुखका सुखजाना, श्वास रुकरुककर आना, रोमोंका खडा होना, पीडाका प्रगट होना,प्लीहा, अफरा, आंतोंका वोलना, अन्नका न पचना,उदावर्त,
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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