SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४४०.) . चरकसंहिता-भा० टी० । आत्रयका उत्तर। तमुवाचभगवानांत्रयः। समुत्थानपूर्वरूपलिङ्गग्वेदनोपशयविशेषेभ्योविशेषविज्ञानगुल्मानांभवत्यन्येषाञ्चरोगाणामनिवेश ! तत्तुखलुगुल्मेषूच्यमानंनिबोध ॥३॥ यह सुनकर आत्रेय भगवान् कहनेलगे कि हे अग्निवेश ! कारण, पूर्वरूप, रूप, वेदना और उपशयके भेदसे गुल्मोंका विशेषरूपसे अलग २ ज्ञान होसकता है। इसी प्रकार कारणादि द्वारा अन्य रोगोंका भी ज्ञान हो सकताहै । सो यहांपर गुल्मरोगके कारण आदिकोंका श्रवण करो ॥३॥ ___ वातकुपितहोनेका कारण । यदापुरुषोवातलोविशेषेणज्वरवमनविरेचनातीसाराणामन्यतमेनकर्शनेनकर्शितोवातलमाहारमाहरतिशीतंवाविशेषणातिमात्रस्नेहपूर्वे वा वमनविरेचनेपिबत्यनुदानवातमूत्रपुरीषवेगानविरुणद्धिअत्यशितोवापिबतिनवोदकमतिमात्रसंक्षोभणावा यानेनयातिअतिव्यवायव्यायाममद्यरुचिर्वाभिघातमिच्छति वाविषमाशनशयनस्थानचंक्रमणसेवीवाभवतिअन्यद्वाकिञ्चिदेवंविधंवाअतिमात्रंव्यायामजातंवाआरभतेतस्यापचाराद्वातः । प्रकोपमापद्यते ॥४॥ जब वातप्रधान मनुष्य ज्वर, वमन, विरेचन, अतिसार अथवा अन्य कर्षण. द्वारा विशेषरूपसे कृश होजाताहै फिर वह वातकारक और शीतल द्रव्योंको विशेपरूपसे सेवन करे अथवा विना स्नेहन किये ही वमन, विरेचनादिकोंका उपयोग करे अथवा विनाही वेगके वमन आदिकोंको को एवम् मल, मूत्रके वेगोंको रोके अथवा नवीन अन्नोंको और नवीन जलको अधिक मात्रासे सेवन करे या बहुत संक्षोभ ( हिलाना) करनेवाली सवारीमें बैठे एवम् मैथुन, व्यायाम, मद्य,' इनको अधिक सेवन करे एवम् चोट लगनेसे विषम भोजन और विषम शयन करनेसे ऊंचे नीच स्थानमें अधिक फिरनेसे अथवा इस प्रकारके अन्य थकावट आदि पैदा करनेवाले कारणोंसे तथा वातकारककारणों के उपस्थित होनेसे एवम् उपरोक्त वमन, विरेचनादिकोंमें किसीप्रकारका अपचार होनेसे वायुका कोप होताहै ॥४॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy