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________________ सूत्रस्थान-१०३०. (४०३) ईश्वरपरायण इस लोक और परलोकमें हितका चाहनेवाला तथा स्मृविसम्पन्न-इन सब गुणोंयुक्त मनुष्यकी आयु हितआयु कही जातीहै । और इससे विपरीत गुणोंवालेकी आयु अहित आयु कही जाती है ॥ १८॥ आयुका प्रमाण । प्रमाणमायुषस्त्वर्थेन्द्रियमनोबुद्धिचेष्टादीनांस्वेनाभिभूतस्य विकृतिलक्षणैरुपलभ्यतेअनिमित्तैरिदमस्मात्क्षणान्मुहादिवसात्त्रिपञ्चसतदशद्वादशाहात्पक्षात् मासात्षण्म सात्संवत्सराद्वास्वभावमापत्स्यतेइति । तत्रस्वभावःप्रवृत्तेरुपरमो मरणमनित्यतानिरोधइत्येकोऽर्थः इत्यायुषःप्रमाणमतोविपरीतमप्रमाणम् ॥ १९ ॥ अब आयुके प्रमाणको कथन करतेहैं। इन्द्रियोंके अर्थ यथा शब्द, स्पर्श आदि इन्द्रिय, मन, बुद्धि,चेष्टा आदिकोंकी विकृति आदिके लक्षणोंसे आयुका प्रमाण जाना जाताहै यदि इनमें अकस्मात् विकृति होजाय तो क्षणभरमें या मुहूर्तमें एक दिनमें अथवा तीन दिन, पाँच दिन, सात दिन, दशदिन, एवम् बारहदिनमें तथा पक्षमें या महीनेमें अथवा छमहीनेमें या एक वर्ष में मनुष्य स्वभावमें स्थित हो जाताहै । यहांपर स्वभाव, प्रवृत्तिका उपराम, मरण, अनित्यता, निरोध यह सब एक ही अर्थवाले शब्द हैं । अर्थात् मरणके वाचक हैं वस यही आयुके प्रमाण हैं। इससे विपरीत आयुका अप्रमाण जानना ॥ १९ ॥ आयुर्वेदका नित्यत्व प्रतिपादन । अरिष्टाधिकारेदेहप्रकृतिलक्षणमाधिकत्यचोपदिष्टमायुषःप्रमाणमायुर्वेदे । प्रयोजनचास्यस्वस्थस्यस्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकारप्रशमनम् ।सोऽयमायुर्वेदःशाश्वतोनिर्दिश्यतेऽनादित्वा. स्वभावसंसिद्धस्वलक्षणत्वाद्भावस्वभावनित्यत्वाच्च । नहि नाभूत्कदाचिदायुषःसन्तानोवृद्धिसन्तानोवाशाश्वतश्चायुषोवेदिताअनादिमञ्चसुखदुःखंसद्रव्यहेतुलक्षणमपरापरयोगादेष चार्थसंग्रहोविभाव्यते। आयुर्वेदलक्षणमितियत्पुनःगुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षादीनाञ्चद्वंद्वानांसामान्यावशेषायांवृद्धिह्रासौयथोक्तं गुरुभिरग्यस्यमानेगुरूणामुपचयोभवत्यपचयोल
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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