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________________ सूत्रस्थान-अ० २८. (३८१) ढखादितप्रभवम् । अशितलीढखादितप्रभवाश्चास्मिरीरेव्याधयोभवन्ति ॥६॥ हिताहितोपयोगविशेषास्त्वनशुभाशुभविशेषकराभवन्ति, इति ॥७॥ इन मल और प्रसाद संज्ञक धातुओंके स्रोतस्थान तथा मार्ग अपने उपयोगी धातुओं द्वारा पूर्णताको और पुष्टताको प्राप्त होते हैं । इस प्रकार यह शरीर अशित (भोज्य), पीत, आलोढ और खाद्य पदार्थों द्वारा वृद्धि सम्पन्न होताहै इसी प्रकार शारीरिक व्याधियां भी खाने,पीने, चूसने और चाटनेके आहारों द्वाराही उत्पन्न होता हैं । इस प्रकार हित आहारसे शरीरकी उत्पत्ति तथा वृाई उत्पन्न होती है अर्थात् हित आहारका सेवन करना सुखकारक होता एवम् अहित आहारका करना दुःखकारक होता है ॥ ६ ॥७॥ अग्निवेशका प्रश्न । एवंवादिनभगवन्तमात्रेयमग्निवेशउवाचादृश्यन्ते हिभगवन! हितससाख्यातमप्याहारमुपयुञानाव्याधिमन्तश्चागदाश्चतथैवाहितसमाख्यातमेवदृष्टेकथंहिताहितोपयोगविशेषात्मकाभाशुभविशेषमुपलभेमहीति ॥ ८॥ इस प्रकार कहते हुए भगवान् आत्रेयजीसे अग्निवेश कहनेलगे कि हे भगवन् ! आपने कथन कियाहै कि हित आहारका सेवन करनेसे रोगी पुरुष भी निरोग हो जाते हैं और निरोग मनुष्यों के शरीर स्वस्थ और बलिष्ठ होते हैं उसी प्रकार अहित आहारके सेवनसे व्याधियां उत्पन्न होती हैं । सो हे गुरो ! संसारमें ऐसा भी दखने में आताहै कि अहित आहारके सेवन करनेवाले पुरुष नीरोग रहते हैं और हित आहार सेवन करनेवालोंको अनेक प्रकारके रोग उत्पन्न होजाते हैं इस लिये हित और आहित आहार विशेषात्मक शुभ और अशुभका किस प्रकार हमको. ज्ञान होसकताहै सो कृपाकर कथन कीजिये ॥ ८॥ हिताहित आहार विषयमें आत्रेयका उत्तर।। तमुवाचभगवानात्रेयः। नहिताहारोपयोगिनामानवेश तन्निमित्ताच्याषयोजायन्ते । नचकेवलंहिताहारोपयोगादेवसव व्याधिभयमतिक्रान्तंभवति । सान्तहिऋतेऽपिहिताहारोपयोगादन्यरोगनरुतयः । तद्यथा-कालविपर्ययःप्रज्ञापराधः परिणामश्चशब्दस्पर्शरूपरसगन्धाश्चासात्म्याइतिाताश्चरोगप्रक
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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