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________________ सूत्रस्थान-अ० २६ (६ २७६) यह सुनकर आत्रेयंजी कहनेलगे कि, हे.अग्निवेश ! जो आहार शरीरके सात्म्य (अनुकूल ) होनेसे शारीरिक धातुओंको यथार्थ रखतेहैं । और विषम हुए धातुओंको भी समान अवस्थामें कर देता है । उसको हितकारी जानना चाहिये तात्पर्य यह हुआ कि जिस आहारके सेवनसे शरीरके सब धातु ठीक रहें उसको हितकारक आहार जानना, इससे विपरीत अहितकारी समझना चाहिये । वस हितकर और अहितकर आहारके यह निर्विवाद लक्षण समझो ॥ ३०॥ . अग्निवेशका प्रश्न । , एवंवादिनञ्चभगवन्तमात्रेयमग्निवेशउवाच ।भगवन् ! नन्वे तदेवमुपदिष्टंभूयिष्ठकल्पाःसर्वभिषजोविज्ञास्यन्ति ॥३१॥ ' आग्निवेश फिर आत्रेय भगवान्से कहने लगे कि संक्षेपसे कहे हुए आपके इस उपदेशको सब वैद्य नहीं समझ सकते इसलिये कृपया विस्तारपूर्वक कथन कीजिये ॥३१॥ आत्रेयका उत्तर । तमुवाचभगवानात्रयः । येषांविदितमाहारतत्त्वमग्निवेश ! गुणतोद्रव्यतः कर्मतः सर्वावयवतोमात्रादयोभावास्तएतद्देवमुपदिष्टंविज्ञातुमुत्सहन्तीयथातुखल्वेतदुपदिष्टभूयिष्ठकल्पाः सर्वभिषजोविज्ञास्यन्तितथैतदुपदेक्ष्यामः । मात्रादीन्भावानु- . दाहरन्तःतेषांहिबहुविधविकल्पाभवन्ति । आहारविधिविशेषांस्तुखलुलक्षणतश्चावयवतश्चानुव्याख्यास्यामः ॥ ३२॥ तब आत्रेय भगवान् अग्निवेशसे कहने लगे कि गुणसे,द्रव्यसे,कर्मसे और संपूर्ण अवयवोंसे मात्रादि भावके भेदसें आहार तत्त्वको जो वैद्य जानताहै उसके लिये यह संक्षपसे दियाहुआ उपदेश बोधगम्य होसकताहै अर्थात् समझमें आसकताहै किन्तु साधारण बुद्धिके मनुष्य इस विचारको नहीं समझ सकते इसलिये साधारण वैद्योंको बोध होनेके लिये मात्रांदिकोंका उपदेश करतेहैं । मात्रादि भावोंकी अनेक प्रकारसे कल्पना है उनमें जो विशेष २ आहार विधिके लक्षण और विभाग हैं उनका कथन करतेहैं सो श्रवण करो ॥३२॥ . आहारों के भेदवर्णन । आहारत्वम् । आहारस्यैकविधमर्थाभेदात्सपुनर्द्वियोनिःस्थावरजङ्गमात्मकत्वात् । द्विविधाप्रभावोहिताहितोदकविशेषांच्च
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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