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________________ • सूत्रस्थान-भ० २४. ६२६१) सुखायुषा । युनक्तिप्राणिनंप्राणःशोणितंझनुवर्तते ॥२॥ देश, काल विचारकर आत्माके अनुकूल व्यवहार करनेवाले मनुष्योंके शरीरमें 'जिस प्रकार शुद्ध रक्त रहे वह विधि हम प्रकाशित करते हैं, क्योंकि शरीरमें शुद्ध रक्तकें रहनेसे बल, वर्ण, सुख और आयुकी वृद्धि होती है कारण कि मनुष्योंके शरीरों में प्राण रुधिरके अनुवर्ती होते हैं ॥ १ ॥२॥ प्रदुष्टबहुतीक्ष्णोष्णैर्मधेरन्यैश्चतद्विधैः तथातिलवणक्षारैरम्लः' कटुभिरेवच॥३॥ कुलत्थमाषनिष्पावतिलतैलनिषेवणैः ।पिण्डालुमूलकादीनांहरितानाञ्चसर्वशः॥४ाजलजानूपबैलानांप्र सहानांचसेवनात् । दध्यम्लमस्तुसक्तूनांसुरासौवीरकस्यच॥ ॥५॥ विरुद्धानामुपक्लिन्नपूतीनांभक्षणेनच । भुक्त्वादिवाप्रस्वपतांद्रवस्निग्धगुरूणिच ॥ ६ ॥अत्यादानंतथाक्रोधभजतां चावपानलौ । छर्दिवेगप्रतीघातात्कालेचानवसेचनात् ॥७॥ श्रमाभिघातसन्तापैरजीर्णाध्यशनैस्तथा। शरत्कालस्वभावाचशोगितसंप्रदुष्यति ॥८॥ अव रुधिरके दूषित करनेवाले कारणोंको कहते हैं । खराब हुए बहुतसे वीक्ष्ण, गर्म पदार्थोंके सेवनसे मादक द्रव्य, लवण, क्षार, खटाई, चपरे पदार्थ, कुलथी, उडद, सेम, तिल, तैल, पिंडालु, मूली, सज्जी तथा जलसंचारी और अनूपसंचारी एवम् विलेशयं और प्रसह आदि जीवोंके मांस खानेसे, दही, कांजी, दहीका तोड, . 'सत्तू, सुरा, सौवीर इनके सेवनसे एवम् अपनी आत्माके विरुद्ध आहार करनेसे तथा क्लिन्न, सडाबुसा आहार बहुत सेवन करनेसे शरीरमेंका रक्त दूषित होताहै । इसी प्रकार पतले, चिकने और भारी भोजन करनेसे, दिनमें सोनेसे, मात्रासे अधिक भोजन करनेसे और क्रोध, धूप, आनि इनके सेवन करनेसे, वमनका वेग रोकनेसे, समयोचित रक्तमोक्षण न करानेसेभी रक्त दूषित होताहै। तथा परिश्रम,चोट लगना, अजीर्ण होना, विना पचे भोजन करना इत्यादि कारणोंसे भी रक्त दूषित होताहै एवम् शरद ऋतु स्वभावसे ही रक्तके दूषित होनेका समयह॥३॥४॥५॥६॥७॥८॥ दूषितरक्तके उपद्रव । ततःशोणितजारोगा प्रजायन्तेपृथग्विधाः। मुखपाकोऽक्षिरो. गश्चपतिघाणास्यगन्धता ॥९॥ गुल्मोपदंशवीसर्परक्तपित्त
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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