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________________ (२६०) चरकसंहिता:भा० टी०॥ मन्थःखर्जूरमृद्वीकावृक्षाम्लाम्लीकदाडिमैः ।। पुरूप सामलकैर्युक्तोमद्यविकारनुत् ॥ ३५॥ छुहाडा, मुनका, तंतडीक, इमली, अनारदाना, फालसा, आँवले इन सवका बनाया मंथ मद्य पीनेसे हुए विकारोंको नष्ट करताहै ॥ ३५ ॥ वलवर्णदायक सन्तर्पण । स्वादुरम्लोजलकृतःसस्नेहोरक्षएववा। सद्यःसन्तर्पणोमन्थास्थैर्यवर्णवलप्रदः ॥३६ ।। मीठे और खट्टे पदार्थों को लेकर जलके संयोगसे मंथ वनावे अथवा मीठे खट्टे पदार्योंका स्वरस स्नेहनके साथ या रूखा ही पानसे शरीरमें स्थिरता होती है और. बल तया वर्णकी वृद्धि होताहै ॥ ३६ ॥ तत्रश्लोकः। सन्तर्पणोत्थायरागारोगायेचापतर्पणात् । सन्तर्पणीयेतेऽध्यायेसौषधाःपरिकीर्तिताः ॥ ३७॥ इतिसन्तर्पणीयोऽध्यायःसमाप्तः। इस संवर्पणीय नामक अध्यायमें सतर्पणसे उत्पन्न हुए रोगोंका और लंघनसे उत्पन्न हुए रोगोंका वर्णन तथा उनकी चिकित्साका वर्णन किया गयाहै ॥ ३७॥ इति श्रीमहर्पिचरक० पं०रामप्रसाद०भापाटीकायां सन्तर्पणीयो नाम त्रयोविंशोऽध्यायः ॥ २३ ॥ चतुविशोऽध्यायः। अथातोविधिशोणितीयमध्यायव्याख्यास्याम इतिहस्माह भगवानात्रेयः। अब हम विधिशोणितीय नामके अध्यायकी व्याख्या करतेहैं, ऐसा आये भगवान् कहने लगे। शुद्ध रक्तके गुण । विधिनाशोणितंजातंशुद्धभवतिदेहिनाम् । देशकालौकसाभ्यानांविधियःसंप्रदर्शितः ॥? ॥ तद्विशुद्धहिरुधिरंवलवर्ण
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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