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________________ (१८४) चरकसंहिता-भा० टी०। यवैद्यमानीत्ववुधोविरेचयतिवानवम् । सोऽतियोगादयोगाचमानवोदुःखमश्नुते ॥२॥ और अपने आप वैद्य कहलानेवाला मूर्ख जिसको विरेचन देता है वह अतियोग अथवा अयोगके होनेसे दुःखको भोगताहै ॥२॥ अच्छे विरेचनके लक्षण। दोवल्यंलाघवंग्लानिया॑धीनामणुतारूचिः। हृद्वर्णशुदिक्षत्तष्णाकालेवेगप्रवर्त्तनम् ॥ ३ ॥वुद्धीन्द्रियमनःशुद्धिर्मारुतस्थानुलोमता । सम्यग्विरिक्तलिङ्गानिकायानेश्चानुवर्तनम् ॥ ४ ॥ देहमें दुर्वलता, हलकापन, ग्लानि,रोगका हास, रुचि,हृदय और वर्णकी शुद्धि, क्षुधा, पाका ठीक होना, समयपर मलमूत्रका होना, बुद्धि, इन्द्रिय, और मनका शुद्ध होना, वायुका अनुलोम होना, जठराग्निका वलवान होना यह. लक्षण उत्तम विरेचन होनेके हैं ॥३॥ ४ ॥ दुष्टविरेचनके लक्षण । ष्टीवनंहृदयाशद्धिरुत्क्लेशःश्लेष्मापित्तयोः । आध्मानमरुचि. च्छार्दरदीर्वल्यमलाघवम् ॥ ५॥ जंघोरुसादनंतन्द्रास्तमित्यं पीनसागमः । लक्षणान्यावरिक्तानांमारुतस्यचनिग्रहः॥६॥ मुखसे पानी गिरना, हृदयका भारी होना, कफपित्तके निकलनेकी सी शंका रहना, अफारा, अरुचि, छर्दि, देहमें पुष्टता सी और भारीपन, टांगाम और घुट. नाम शिथिलता, तन्द्रा, देहमें गीलापन, प्रतिश्याय, अधोवायुका ठीक न निक लना यह लक्षण ठीक विरेचन न होनेस होतेहे ॥ ५॥६॥ अतिविरचितके लक्षण। विपित्तश्लेप्मवातानामागतानांयथाक्रमम् । परस्रवतियद्र मदोमांसोदकोपमम् ॥७॥ निःश्लेष्मपित्तमुदकंशोणितंकृप्णमेववा । तप्यतोमारुतातस्यसोतियोगप्रमुह्यतः ॥ ८॥ पाले विष्ठा, पित्त,बलगम, वात यह यथाक्रम निकलकर फिर मेद और मांसके घोचनको समान रक्त निकलनेलगे और कफपित्त रहित पानीका निकलना अथवा
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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