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________________ सूत्रस्थान-अ० १६. (१८३) अध्यायका संक्षिप्तवर्णन । तत्रश्लोकाः । ईश्वराणांवसुमतांवमनंसविरेचनम् । सम्भारा ये यदर्थश्च समानीयप्रयोजयेत् ॥ ३१॥ यथाप्रयोज्यंयामात्रा यदयोगस्यलक्षणम् । योगातियोगयोर्यचदोषायेचाप्युपद्रवाः ॥३२॥ यदसेव्यविशुद्धेनयश्चसंसर्जनक्रमः । तत्सर्वंकल्पनाध्यायेव्याजहार पुनर्वसुः ॥ ३३ ॥ इतिकल्पनाचतुष्केउपकल्पनीयोऽध्यायः। अध्यायके उपसंहारमें यह श्लोक है कि इस कल्पनीयाध्यायमें राजाओं और धनिक पुरुषोंको वमन विरेचनका क्रम और उनके साधनकी सामग्री, तथा वमन विरेचनको मात्रा अयोगके लक्षण तथा सम्यक् योग और अतियोगके लक्षण अतियोगके उपद्रव, संशोधित मनुष्यके सेवनका क्रम और उसको छुट्टी देनेकी विधि यह सब भगवान् पुनर्वसुजीने कथन कियाहै ॥ ३१॥ ३२॥ ३३ ॥ इति श्रीमहर्पिचरकप्रणीतायुर्वेदीयसंहितायां पटियालाराज्यांतर्गतटकसालनिवासिवैद्यपंचानन वैद्यरत्न पं० रामप्रसादवैद्योपाध्यायविरचितप्रसादन्याख्यभाषाटीकाया मुपकल्पनीयो नाम पंचदशोध्यायः ।। १५ ।। षोडशोऽध्यायः। अथातश्चिकित्साप्राभृतीयमध्यायव्याख्यास्याम इति हस्माहभगवानात्रेयः । अब हम चिकित्सामाभृतीय अध्यायका कथन करते हैं । ऐसा भगवान् आत्रेयजी कहनेलगे। . सदसद्वैद्यके कर्मका फल । चिकित्साप्राभृतोविद्वान शास्त्रवान् कर्मतत्परः। नरविरेचयतियंसयोगात्सुखमश्नुते ॥१॥ चिकित्सामें निपुण, शास्त्रको जाननेवाला, अपने चिकित्साकर्ममें तत्पर वैद्य जिस मनुष्यको विरेचन कराता है वह मनुष्य रोगमुक्त होकर परम मुखकों भोगता है ॥१॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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