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________________ (१६४) चरकसंहिता-भा० टी०। लेपबन्धनका समय। रात्रौवद्धदिवामुञ्चेन्मुञ्चेद्रात्रौदिवाकृतम् । विदाहपरिहारार्थस्यात्प्रकर्षस्तुशीतले ॥३६॥ रातका कियाहुआ लेप दिनमें उतारदेवे और दिनका किया रातको उतारदे । और दाह आदिकी निवृत्ति के लिये कियाहुआ लेप ठंडा होने पर भी देर तक रहे तो कोई हानि नहीं॥ ३६ ॥ स्वेदके तेरह भेद। शंकरःप्रस्तरोनाडीपरिषेकोऽवगाहनम्। जेन्ताकोश्मघनःकयुकुटीभूःकुम्भिकैवच ॥ ३७॥ कूपोहोलाकइत्येतेस्वेदयन्तित्रयोदश। तानयथावत्प्रवक्ष्यामिसर्वानेवानुपर्वशः इति ॥३८॥ शंकर, प्रस्तर, नाडी, परिषेक, अवगाहन, जैताक, अश्मघन, कर्ण, कुटी, भू, कुम्भी, कूप, होलाक, इन भेदोंसे स्वेद तेरह प्रकारके हैं उनको क्रमपूर्वक ठीक २ कयन करतेह ॥ ३७ ॥ ३८॥ . शंकरस्वेदका लक्षण । तत्रवस्त्रान्तरितैरवस्त्रान्तरितैर्वापिण्डैर्यथोक्तैरुपस्वेदनशङरस्वेदइतिविद्यात् ॥ ३९॥ उनमें गर्म कीहुई औषधिको कपडेम लपेटकर उससे स्वेदन करे, अथवा गीली औषधियांका पिंडसा बनाकर उसको गर्म करके उससे स्वेदन कियाजाय उसको शंकर स्वेद कहतह ॥ ३९ ॥ प्रस्तरस्वेदका लक्षण । शुकशमीधान्यपुलाकानांवेशवारायसकृशरोत्कारिकादीनांवा प्रस्तरेकोशेयाविकोत्तरप्रच्छदेपञ्चाङ्गुलोरुबुकार्कपत्रप्रच्छदेवा स्वभ्यक्तसर्वगात्रस्यशयानस्योपरिस्वेदनप्रस्तरस्वेदइतिविद्यात्४० पहले नहीं रोगीका सव शरीर चिकना करे । फिर शूकधान्य, शमीधान्य और फलकवान्यको खिचडीकी समान पकाकर अथवा वेशवार, खीर, खिचडी उडदाकी गटीसी आदि जो उचित हो बनाकर रोगीका शरीर जिस पर आसके उतनी भूमिम बिठाये उसके ऊपर रेशमी या उनका वस्त्र अथवा एरंडके पत्र विछाकर उस उ.पर गेगीको मुलाया जाये उसको प्रस्तरस्वद कहते हैं (परंतु नीचे विछा. गाणु द्रव्य गर्भ होना चाहिये) ॥ ४०॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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