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________________ सूत्रस्थान - अ० १४. ( १६३ ) ग्राम्य, आनूप, और जलसंचारी जीवोंका मांस, दूध, बकरीका शिर, मूअरकी अंतडी, पित्ता, रुधिर, घी, तेल, तिल, चावल, इन सबको एक बडे वर्तनमें पकाकर एक नली द्वारा इसकी भांफ शरीरमें दीजाय इसको नाडीस्वेद कहते हैं । देश, काल, व्याधि स्वभाव, युक्तिआदि जाननेवाला वैद्य परीक्षा करके वरना, गिलोय, एरंड, लाल सुहांजना, मूली, सरसों, अडूसा, बास, करंज, आँकके पत्र, अश्मन्तकके पत्र, सिरस, मालती, तुलसी, वनतुलसी, इन सबके पत्रोंका क्वाथ करके नाडीस्वेद करे ॥ २७ ॥ २८ ॥ २९ ॥ ३० ॥ भूतीकपञ्चमूलाभ्यां सुरयादधिमस्तुना । मूत्रैरम्लैश्च सस्ते है नीडी स्वेदंप्रयोजयेत् ॥ ३१ ॥ अथवा अजवायन, वृहत्पञ्चमूल, मद्यं, दहीका पानी, गोमूत्र, कांजी, इनमें घृत तेल आदि मिला तथा क्वाथ करके नाडीस्वेद करे ॥ ३१ ॥ एतएवचनिर्यूहाः प्रयोज्याजालकोष्ठके । स्वेदनार्थं घृतक्षीरतैलकोष्ठांश्चकारयेत् ॥ ३२ ॥ इन उपरोक्त क्वाथोंको एक वडे पात्र में भरकर उस सहते २ क्वाथमें रोगीको बिठानेसे स्वेद क्रिया होती है । ऐसेही घृत तैलादिकोंमें भी स्वेदन के रोगी को बिठाया जाताहै ॥ ३२ ॥ गोधूमशक लैश्चूर्णैर्यवानामम्लसंयुतैः । सस्नेहकिण्वलवणैरुपनाहः प्रशस्यते ॥ ३३ ॥ गेहूं और जौवोंके चूर्ण में - कांजी, स्नेह, मदिराको किट, सेंधानमक, इनको मिलाकर गर्म २ लेप करनेसे भी उत्तम स्वेदन होता है ॥ ३३ ॥ गन्धैः सुरायाः किण्वेन जीवन्त्याशतपुष्पया । उमयाकुष्ठतैलाभ्यांयुक्तयाचोपनाहयेत् ॥ ३४ ॥ गन्धद्रव्य, मदिरा की किट्टी, जीवती, सौंफ, बावची, कूठ, तेल, इनको मिलाकर कुछ गर्म लेप करनेसे स्वेदन होता है ॥ ॥ ३४ ॥ लेपपर पट्टी बांधनेका सामान । - चर्मभिश्चापनद्धव्यः सलोमभिरपूतिभिः । उष्णवीय्यैरला भेतुकौशेयाविकशाटकैः ॥ ३५ ॥ लेप करके ऊपर से कोमल और दुर्गंधरहित उष्णवीर्य चमडा बांधे, यदि ऐसा चमडा न मिले तो रेशमी वस्त्र या भेडकी उनसे बनाहुआ वस्त्र लपेटे ॥ ३५ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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