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________________ ( १५० ) चरकसंहिता - भा० टी० हलकापन, दृढता, अंगों की मजबूती चिकनाहट, श्लक्ष्णतायुक्त शरीर और त्वचाको करना चाहते हो, और जिनके कोष्ठमें कृमि हो तथा कठिन कोठवाले, नासूर तथा नाडीरोग से पीडित, और भी जो तैलयोग्य मनुष्य हो अथवा तैलपान या तैलमर्द - नके अभ्यासवाले हाँ उनको शीतकालमें उचित मात्रासे तैलपान करना हितकारी ६ ॥ ४१ ॥ ४३ ॥ ४४ ॥ वसापान के योग्यपुरुष । वातातपसहायेच रूक्षाभाराध्वकार्पिताः । संशुष्करेतोरुधिर । निष्फीतकफमेदसः ॥ ४५॥ अस्थिसन्धिशिरास्नायुमर्मकोटमहारुजः । बलवान्मारुतोयेषां खानिचावृत्य तिष्ठति ॥४६॥ महच्चाग्निवलयेपांवसासात्म्याश्चयेनराः । तेषांस्नेहयितव्यानां वसापानं विधीयते ॥ ४७ ॥ जो मनुष्य वायु और धूप सहसकते हों, रूक्ष शरीरखाले, भार उठाने तथा रास्ता चलनेस कृश हुए हों, जिनका वीर्य और रक्त क्षीण होगयाहो, जिनके शरीरमसे कफ और मेद नष्ट हो चुका हो, जिनके अस्थि, संधि, शिरा, स्नायु, मर्भस्थान तथा कोष्ठ.. पीडायुक्त हों । जिनके शरीरके छिद्रांको वढे हुए वायुने व्यावृत करलियाहो, जिनका अग्नि और वल उत्तम हो तथा जो चरवी पीनेके अभ्यासवाले हो । उन स्नेह योग्य मनुष्यों को बसापान करना चाहिये ॥ ४५ ॥ ४६ ॥ ४७ ॥ मज्जापान के योग्य पुरुष । दीप्ताग्नयःक्लेश सहाघस्मराः स्नेहसेविनः । वातार्त्ताः क्रूरकोष्टाश्चस्नेह्यामजानमाप्नुयुः ॥ ४८ ॥ जिनकी अग्नि बलवान् हो, जो क्लेश सहसकते हां, बहुत खाते हां, स्नेहक अभ्यास वाले हों, वातसे पीडित हो, कार्टन कोटवाले हों, स्नेहन योग्य हां ऐसे मनुष्यको मला का प्रयोग करावे ॥ ४८ ॥ पान की अवधि | वेभ्योयेभ्योहितोयायः स्नेहः सपरिकीर्तितः । स्नेहनस्यप्रकपनुसतरात्रात्रिरात्रको ॥ ४९ ॥ जिन मनुष्यों को जो जो नेह हितकारी ही उनका कथन कियागया है। स्नेहक स्नेहकी अधिकता होनेसे या न्यूनता होनेसे सात दिन या तीन दिनके अंतर से इनहेपान करावे ॥ ४९ ॥ "
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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