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________________ सूत्रस्थान-अ०१३ :- परिहारेसुखाचैषामात्रास्नेहनबृहणी । वृष्यावल्यानिराबाधा - "चिरश्चाप्यनुवर्तते ॥ ३८ ॥ - इसीप्रकार अतिवृद्ध, बालक, सुकुमार, सुखमें रहनेवाले, जिनका कोष्ठ आर्हितकारी विरेचनसे खाली हो, मंदाग्निवाले, ज्वर, अतिसार, खांसी, यह जिनको बहुत दिनोंसे हों, जो बलहीन हैं, इन सबको स्नेहकी हस्वमात्रा पिलानी चाहिये। यह मात्रा इन मनुष्योंको सुख देनेवाली है,अंतमें कष्ट नहीं देती शरीरको चिकना करतीहै । वीर्य और बलको बढातीहै । बहुत काल सेवन करनेसे भी कोई कष्ट नहीं देती (इस समय इस्वमात्रा ही बहुतसे लोगोंको हितकर होतीहै ) ॥ ३६ ।। ॥३७॥ ३८॥ घृतपानके योग्य व्यक्ति । वातपित्तप्रकृतयोवातपित्तविकारिणः । चक्षुःकामाःक्षताः क्षीणावृद्धाबालास्तथाबलाः ॥३९॥ आयुःप्रकर्षकामाश्चबल... वर्णस्वरार्थिनः । पुष्टिकामा प्रजाकामा:सौकुमार्थिनश्चये ॥४०॥ दीप्त्योजःस्मृतिमेधाग्निबुद्धीन्द्रियबलार्थिनः।पिबेयुःसर्पिराश्चिदाहशस्त्रविषाग्निभिः ॥ ४१ ॥ वाते और पित्तकी प्रकृतिवालेको, वात पित्तके विकारियोंको, दृष्टिकी शक्तिकी इच्छावालेको, क्षत और क्षीणको, वृद्धको, बालकको, दुर्बलको, दीर्घायुकी इच्छावालेको, बल, वर्ण और स्वरके उत्तम करनेको, पुष्टताकी इच्छावालेको, संतत्रिकी कामनावालेको, सुकुमारताकी इच्छावालेको, कांति, ओज, स्मरणशक्ति, मेधा, आग्ने, बुद्धि और इंद्रियोंके बलकी इच्छावालेको, दाह शस्त्र, विष, आग्ने, इनसे पीडितको घृतपान करना बहुत उत्तम है ॥ ३९ ॥ ४० ॥४१॥ - तैलपानके योग्य व्यक्ति। प्रवृद्धश्लेष्ममेदरकाश्चलस्थूलगलोदराः। वातव्याधिभिराविष्टावातप्रकृतयश्चये ॥ ४२ ॥ बलंतनुत्वलघुतांदृढतांस्थिरगात्रताम् । स्निग्धश्लक्ष्णतनुत्वतायेचकांक्षन्तिदेहिनः॥४३॥ कामकोष्ठा करकोष्ठास्तथानाडीभिर्दिताः । पिबेयुःशीतले . कालेतैलंतैलोचिताश्चये ४४ ॥ कफ और चरवी जिनकी बढीहुई हो जिनका गला और पैट स्थूल हो तथा __ हिलता हो, जो वातव्याधिसे पीडित हों, वातके स्वभाववाले हों तथा वल, तनुता
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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