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________________ सूत्रस्थान - अ० १३. त्रयोदशोऽध्यायः । ( १४३) अथातः स्नेहाध्यायं व्याख्यास्याम इतिहस्माह भगवाना त्रेयः ॥ ra हम स्नेहाध्यायी व्याख्या करते हैं. इस प्रकार भगवान् आत्रेयजी कहने लगे । अग्निवेशका प्रश्न | सांख्यैःसंख्यातसंख्येयःसहासीनं पुनर्वसुम् । जगद्धितार्थपत्रच्छवह्निवेशः सुसंशयम् ॥ १॥ किंयानयः कतिस्नेहाः केच स्नेहगु'णाःपृथक् । कालानुपानेकेकस्यकतिकाश्चविचारणाः ॥ २ ॥ कतिमात्राः कथंमानाकाच केषूपदिश्यते । कश्च के भ्योहितः स्नेहः प्रकर्षः स्नेहनेचकः ॥३॥ स्नेह्याः केकेचनस्निग्धाः स्निग्धातिस्निग्धलक्षणम् । किंपानात्प्रथमपीते जीर्णेकिञ्च हिताहितम् ४ ॥ केमृदुक्रूरकोष्टाः काव्यापदः सिद्धयश्चकाः। अच्छे संशाधनेचैवस्नेहेकावृत्तिरिष्यते ॥ ५ ॥ विचारणाः केषुयोज्याविधिनाकेनतत् प्रभो । स्नेहस्यामितविज्ञानज्ञानामिच्छामि वेदितुम् ॥ ६ ॥ सांख्य शास्त्र के विख्यात और प्रसिद्ध २ ऋषियों में विराजमान पुनर्वसुजसे संसार के हित के लिये अग्निवेश अपने संशयको पूछनेलगे ॥ १ ॥ हे प्रभो ! स्नेहके कारण कौन २ द्रव्य हैं । स्नेह कितने प्रकार के हैं स्नेहोंके अलग २ कौनसे गुण हैं किस समय कानसे स्नेहको पान करना चाहिये और उनके अनुपान क्या हैं। स्नेह कितने प्रकारके हैं विचारणा कितनी और कौन हैं। कितनी मात्रा से सेवन करना, इसका मान कैसा है । कैसा किसके लिये कहा है | कौन स्नेह किसको हितकारक हैं सब स्नेहों में उत्तम स्नेह कौनसा है किसको स्नेहन करना चाहिये किसको नहीं करना । स्निग्ध और अतिस्निग्धके क्या २ लक्षण हैं। स्नेह पीनसे पहले और स्नेह पीने से पीछे तथा स्नेहके जीर्ण होनेपर कौन क्रिया हित है और कौन अहित है मृदु कोष्ठ और क्रूर कोष्ठ कौन होतेहैं । स्नेहपानके अयोगसे क्या खराबी होती है और उसका यत्म क्या है अच्छस्नेह और संशोधन स्नेहमें क्या बर्ताव करना चाहिये ।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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