SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्रस्थान-अ० १२. .. (१४१) मारीचि ऋषि कहनेलगे कि शरीरमें अग्नि ही पित्तमें रहकर अकुपित और कुपित होकर शुभ तथा अशुभको करती है । वह इसप्रकार है जैसे विपाक और अविपाक, दर्शन, अदर्शन, गर्मीको ठीक रखना या वेठीक रखना,प्रकृति या विकृति, वर्ण और अवर्ण, शूरता, अशूरता, ऐसे ही भय, क्रोध, हर्ष, मोह, प्रसन्नता आदि और भी दो दो हिस्सेमें करता है अर्थात् कुपित आग्नि अशुभ और अकुपित शुभः कारक होता है ॥ १५ ॥ शरीरमें सोमकी प्रधानता । तच्छत्वामारीचिवचः काश्यपउवाच । सोमएक्शरीरेश्लेष्मान्तर्गतःकुपिताकुपितःशुभाशुभानिकरोति । तद्यथा। दाढ्यशैथिल्यमुपचयंकार्यमुत्साहमालस्यवृषताक्लीबतांज्ञानमज्ञानबुद्धिमोहमेवमादीनिचापराणिद्वन्द्वादीनीति ॥ १६ ॥ इस प्रकार मारीचिके वाक्यको सुनकर काश्यप बोले कि सोम ही शरीरके कफमें रहकर विना कुपित हुआ शुभ और कुपित हुआ अशुभ करताहै । जैसा दृढता, शिथिलता; पुष्टता, कृशता; उत्साह, आलस्य, पुरुषार्थता, क्लीवता; ज्ञान अज्ञान, बुद्धि, मोह आदि अन्य कार्य भी प्रकृतिस्थ होनेपर शुभ और कुपित्त होनेपर अशुभ करताहै ॥ १६ ॥ पुनर्वसुका सिद्धांत । तच्छत्वाकाश्यपवचोभगवानपुनर्वसुरात्रेयउवाच। सर्वएवभवन्तःसम्यगाहुरन्यत्रैकान्तिकवचनात् ॥ सर्वएवखलुवातपित्त श्लेष्मणःप्रकृतिभूताःपुरुषमव्यापन्नेन्द्रियंबलवर्णसुखोपपन्नमायुषामहतोपपादयन्ति । सम्यगेवाचरिताधर्मार्थकामानिश्रेयसेनमहतोपपादयंतिपुरुषमिहचामुष्मिश्चलोके । विकृतास्त्वेनंमहताविपर्ययेणोपपादयन्ति। ऋतवस्त्रयइवविकृतिमापन्नालोकमशुभेनोपघातकालेइत्येतदृषयः सर्वएवानुमोनिरे वचनमात्रेयस्यभगवतोऽभिननन्दुश्चेति ॥ १७॥ . . यह काश्यपका वचन सुनकर भगवान् पुनर्वस आत्रेयजी बोले कि आप सबने ही वात पित्त और कफके विषयमें ठीक कहा । यह तीनों ( वात पित्त कफ) ही
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy