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________________ सूत्रस्थान- अ० १२. - ८१३९१ ठीक उत्पन्न होना, ६ ऋतुओंका ठीक होना, संपूर्ण पार्थिव धातुओंका विभागे तथा घनता और आकृतिका ठीक होना, बीजामेंसे अंकुरादि निकलना, खेती तथा घासका वढना, क्लेदका हग्ना, विकारयुक्त वस्तुको विकाररहित बनादेना। ऐसे ऐसे शुभ कार्यों को प्रकृतिस्थ बाह्य वायु करताहै ॥ ९ ॥ कुपित बाह्य वायुके कर्म । प्रकुपितस्यखल्वस्य लोकेषुचरतः कर्माणीमानि भवन्ति ॥ १०॥ प्रकुपित हुए बाह्यवायुके यह कर्म ( आगे कहे हुए ) होते हैं ॥ १० ॥ तद्यथा । उत्पीडनं सागराणामुद्वर्त्तनंसरसां प्रतिसरणमापगानामाकम्पनञ्चभूमेराधमनमम्बुदानां शिखरिशिखरावमथनमुन्मथन मनोकहानांनिहारनिर्ह्रादपांशुसिकतामत्स्यभे कोरगक्षाररुधिराश्माशनिविसर्गोव्यादनञ्चषण्णामृतूनांशस्यानामसंघातो भूतानाञ्चोपसगभावानाञ्चाभावकरणम् । चतुर्युगान्तकराणांमेघसूर्थ्यानलानांविसर्गः, सहिभगवान्प्रभवश्श्राव्ययश्च भूतानां भावानामभावाकरः ॥ ११ ॥ वह ऐसे हैं समुद्रोंको डगमगा देना, तालाओंके जलोंका आलोडन करडालना नदियों को उलटा करदेना, भूकंप होना, मेघोंका इधर उधर चालन होना, पर्वतों के शिखरोंका टूटना, वृक्षोंका उखाडना नीहार ( पानी मिली हवा), गूंजदार शव्द, गरदा, रेत, मत्स्य, मेडक, सांप, खार, रुधिर, पत्थर, वज्र, इनका आकाशसे गिरना, छहों ऋतुओं में विकृति होना, खेतीका विगडना, भूत आदि गणोंकी बाधा होना, होनेयोग्य वस्तुओंका न होना, यह उपद्रव होतेहैं । चारों युगों के नष्टकर्ता अर्थात् प्रलयकारक मेघ, सूर्य, वायु और अग्निको फैलाना, यह वायु भगवान् ही भूत सृष्टिकी उत्पत्ति, स्थिति और नाशको करनेवाला है ॥ ११ ॥ वायुके साधारण धर्म | सुखासुखयोर्विधातामृत्युर्य मोनियन्ताप्रजापतिरदितिर्विश्वकर्माविश्वरूपःसर्वगःसर्वतन्त्राणां विधाता । भावानामपुर्वि - भुर्विष्णुःकान्तालोकानां वायुरेव भगवानिति ॥ १२ ॥ -- यह वायु ही सुख दुःखको देनेवाला मृत्यु, यम, नियंता, प्रजापति, अदिती, विश्वकर्मा, विश्वरूप, सर्वगामी सर्वंतंत्रोंको रचनेवाला है । और सब भावोंमेंअणु, विभु, विष्णु, तीनों लोकोंमें व्यापक, और भगवान् है ॥ १२ ॥ -
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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