SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७८) चरकसंहिता-भा० टी०। . वेगोंके रोकनेका निषेध । नवेगान्धारयेद्धीमाजातान्मूत्रपुरीषयोः । नरेतसोनवातस्यन वम्याःक्षवथोर्नच ॥१॥ नोद्वारस्यनजृम्भायानवेगान्क्षुत्पिपासयोः । नवाप्पस्यननिद्राया न श्वासस्यश्रमेणच ॥ २ ॥ एतान्धारयतोजातान्वेगानोगाभवन्तिये। पृथक्पृथचिकि सार्थं तन्मेनिगदतःशृणु ॥३॥ बुद्धिमान् मनुष्यको उचित है कि- मूत्र, मल, रेत, अधोवायु, छर्दि, छींक. डकार, जाई, भूख, प्यास, अश्रुपात, निद्रा, श्रमजन्यश्वास, इनके वेगोंको कनी न रोके । इनके वेग रोकनेसे जो जो रोग पैदा होतेहैं उनको अलग २ आगे वर्णन करतेहे सो तुम सुनो ॥ १॥ २ ॥३॥ मूत्रके वेगको रोकनेके दोष। वस्तिमेहनयो शलमत्रकच्छंशिरोरुजा । विरामोवङ्क्षणानाहःस्याल्लिङ्गमूत्रनिग्रहे ॥ ४ ॥ मूत्रका वेग रोकनेसे वस्ति और लिंगमें पीडा होतीहै । मूत्रकृच्छ, मस्तकमें पीडा देहेका नवना, पेट में पीडा, और अफारा यह उपद्रव होते हैं ॥ ४ ॥ मूत्र रुकनेपर उपाय । स्वेदावगाहनाभ्यङ्गान्सर्पिषश्चावपडिकम् । सूत्रेप्रतिहते-त्रिविधंबस्तिकर्मच ॥ ५ ॥ ( यत्न ) मूत्रक रुकनेमें--पसीना देना, जल में बैठना, मालिस करना, घृतपान काना, और निरूहण, अनुवासन, उत्तरवस्ति यह तीन प्रकारका वस्तिकर्म करना ॥५॥ मलरोकनमें दोष । पक्वाशयशिरःशूलंवातव!निरोधनम् । पिण्डिकोद्वेष्टनाध्मानं पुरीपेस्याद्विधारिते ॥६॥ मलका वेग रोकनेस- पकाशयम और शिरम पीडा, अधोवायु और विष्ठाका रुस्ला, पिंडलियाम पीडा, अमारा यह उपद्रव होते हैं ॥ ६ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy