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________________ (७७) सूत्रस्थान - अ० ७. ओकसात्म्य | इत्युक्तमृतुसात्म्यंयच्चेष्टाहारव्यपाश्रयम् । उपशेतेय दौचित्यादोकसात्म्यं तदुच्यते ॥ ४८ ॥ इस प्रकार जिस २ ऋतु जैसा २ आहार विहार सात्म्य ( शरीरानुकूल ) है उसका कथन करदिया है । आहार विहारका सुखकारी अभ्यास " ओकसात्म्य 2. कहा जाता है ॥ ४८ ॥ सात्म्यका लक्षण । दोषाणामामयानाञ्चविपरीतगुणं गुणैः । सात्म्यमिच्छन्तिसात्म्यज्ञाश्चेष्टितंचाद्यमेवच ॥ ४९ ॥ इति । जो आहार विहार दोषोंसे और रोगोंसे विपरीत गुण करनेवाला अर्थात् रोगसे बचाकर आरोग्य रखनेवाला है उसको "सात्म्य" कहते हैं । सात्म्य के जाननेवाले ओकसात्म्यको भी सात्म्य ही कहते हैं ॥ ४९ ॥ तत्रश्लोकः । वृतावृतोनृभिः सेव्यमसेव्यंयच्चकिञ्चन । तस्याशितीये निर्दिष्टहेतुमत्सात्म्यमेवचेति ॥ ५० ॥ इति अग्निवेशकृतेतन्त्र चरकप्रतिसंस्कृतेतस्या शितीयोऽध्यायः ॥ ६ ॥ यहाँ अध्यायकी पूर्तिका श्लोक है कि इस तस्याशितीय अध्यायमें जो २ पदार्थ - जिस २ ऋतु सेवन करने योग्य हैं उन उनका वर्णन किया गया है कारणके अनु-सार सात्म्य अर्थात् शरीरानुकूल हैं ॥ ५० ॥ इति श्रीमहपिचरकप्रणीतायुर्वेदसंहितायां पटियाला राज्यान्तर्गतटकसालनिवासिवैद्यपञ्चानन वैद्यरत्न पं० रामप्रसादकृतप्रसादन्याख्यभाषाटीकायां तस्याशितीयो नाम षष्ठोध्यायः ॥ ६ ॥ सप्तमोऽध्यायः । अथातो न वेगान्धारणीयमध्यायं व्याख्यास्यामः । इति हस्माहभगवानात्रेयः । अब हम "न वेगान्धारणीय" नामके अध्यायकी व्याख्या करते हैं । ऐसा भगवान् आत्रेय कहने लगे ।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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