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________________ भद्रषाहु-चरित्रवाले, रात्रि आहारके त्यागी, अपने आत्मस्वरूपका जानने वाले, शास्त्रानुसार गमन आलाप भोजनादि करने वाले, यथाविधि आदान निक्षेपणादि समितियोंमें अतिचार न लगाने वाले, इन्द्रिय रूप अश्वको आत्माधीन करनेवाले, छह आवश्यककर्मके पालक, वस्त्रत्याग, लोच, पृथ्वीपर शयन, स्नान, खड़े होकर भोजन, दन्तकान धोना तथा एकमुक्त आदि परीषहके जीतनेवाले, समस्त संघको आनन्दित करनेवाले तथा अत्यन्त विनयी युद्धिमान भद्रबाहुमुनिने अपने गुरूके अनुग्रहसे हादशाङ्ग शास्त्र पढ़े॥ ११७॥१२॥फिर अपनेमें श्रुतज्ञानकी पूर्णता हुई समझ कर भद्रबाहु-जबश्श्रुतज्ञानकी भक्तिसे कायोत्सर्ग धारणकर स्थित थे उससमय प्रातःकालमें समस्तदेव तथा मनुष्यों ने आकर भद्रबाहु महामुनिकी असन्त भक्तिपूर्वक हर्षके साथ पूजनकी ॥१२॥१२३॥ अपने गांभीर्यसे समुद्रको गृहन् प्रत्तोपयोगीनि शीलशाले नियन्त्रयन् । दुर्वारमारमात मूछी छिन्दम्परिअहे ॥ १७॥ क्षेपयक्षपदाहारं खखरूमाहिताशयः। सूत्रोफगमनालापानान कुर्वन्विशुद्धधीः ॥ १४॥ ययोकादाननिक्षेपमलायुधानमाश्रयन । जितपश्चात दुर्वानी षडावश्यकमाधवद ॥ १६ ॥ विचललोचमूशयास्थानेषु स्थितिभोजने । भदन्तपावने कमके नितपरीषहः ॥ ११ ॥ गुरोलमहादीमान द्वादशाहमपापठन् मोदयन्सकळं सह वहन्विनामुल्वनम् ॥१२॥ पथमिः कुलकम्, श्रुतसंपूर्णतामाप्तमिति संचिन्स भदोः श्रुतमक्त्या समादाय कायोत्सर्गस्थितः प्रये ॥११॥ सदा सुरनरा; सर्वे समभ्येयातिभजितः । चक: पूजां प्रमोदेन भद्रबाहुमहामुनेः ।। १३३ ॥ गाम्भीर्येण जिताम्भोधिः कान्त्या निर्मितशीतगुः ।
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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