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________________ ममूलभाषामुखाइ। - २ जीतने वाला, कान्तिस चन्द्रमाको लज्जित काने वाला, तेजके द्वारा सूर्यको जीतने वाला तथा धैर्यसे सुमेरु पर्वत को नीचा करने वाला इत्यादिगुणमणिमाला नाप भूषणसे विभूषित तथा सम्पूर्ण जगतको आनन्दका देने वाला भद्रबाहु अत्यन्त शोभने लगा॥१२॥१२५।। फिर कुछदिनों बाद-गोवर्द्धनाचार्यने भद्राहको गुणरत्रका समुद्र समझकर अपने आचार्य पदमें नियोजित किया । भद्रबाहु भी अपने कान्तिसमूहको प्रकाशित करता हुआ तथा महामोह रूप अन्धकारका नाश करता हुआ गोवर्द्धन गुरुके पदमें ऐसा शोभनेलगा जैसा उदयाचल पर्वत पर सूर्य शोभता है। क्योंकिसूर्यभीतो जब उदयपर्वत पर आता है उससमय अपने कान्तिसमूहको भासुर करता है तथा अन्धकारका नाश करता है ॥१२॥१२॥ यह ठीक है कि-पुण्यकर्मके उदयसे जीत्रोंका अच्छे उत्तम वंशमें जन्म होताहै, उत्कृष्ट शरीर संप्राप्त तेसा निससम्म यप जितमन्दर इलादिगुनमाणिमानार भामरः । निःशपमगदानन्ददायक मूरिंगवी । १२५ ॥ मापदंनी पनी माग समप्रमागरम् | खपदे यांनयामान भरपाई गनागि ॥ १२६ भागलिश. मामार महामोहनमोरन् । शुभऽमा गुस्सान इलया पार ! १३॥ विख्यातो तापी जननमुरगुपं देहिना देहमुद म्या विधानामा गुणगुरुगुरुERITESH
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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