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________________ आओ जीना सीन... प्रयोग करें (2) प्रयोग करें ) प्रयोग करें आओ जीना सीन... श्वास जब तक अन्तःकरण नहीं बदलता, आदमी भीतर से नहीं बदलता, तब तक बाहरी परिवर्तन हो जाने पर भी बहुत कुछ परिवर्तन नहीं होता। आचार्य महाप्रज्ञजी ने यह बात केवल उपदेश के लिए नहीं बताई। उनका विश्वास है - हर कोई बदल हम लोग चाहे धर्म सकता है, बस उसके लिए प्रयोग की आवश्यकता है। के क्षेत्र में हों या उन्होंने प्रयोग दिये हैं और साथ ही आदतों को बदलने का रहस्य भी बताया है। शिक्षा के क्षेत्र में, आदतों को बदलने का रहस्य है - एक संकल्प संकल्प सिद्धांत को जितना से शुरु करना और करते - करते उस संकल्प को महत्त्व देते हैं, भीतर तक पहुँचा देना। केवल संकल्प बचे। यह उतना प्रयोग को महत्त्वपूर्ण स्थिति है। कितने ऋषिमुनि हुए, कितने ग्रंथ हैं, लोग प्रवचन नहीं। प्रवचन सुनते हैं, मंदिर जाते हैं और शिक्षा भी काफी लेते हैं, उपदेश में विश्वास पर बदलते नहीं ऐसा क्यों? क्योंकि जीने के लिए - आचार्य कहााले छोटी-छोटी बातें सीखना भी जरूरी है। जो हम रोज के व्यवहार में करते हैं, उन्हीं पर थोड़ा चिंतन, मनन और आत्मनिरीक्षण करें। थोड़ा सा बदलाव भी काफी फलदायक होगा। जैसे खाना-पीना, उठना, बैठना, बोलना... यह तो हम रोज ही करते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण है वर्तमान में जीना । जो गया उस कल की याद में समय व्यर्थ जाता है और जो आने वाला है उसके सुनहरे सपनों में हम वर्तमान को भूल जाते हैं। इसीलिए जीवन के हर पल के बारे में हमें सोचना है, क्या करना है और क्या नहीं करना। * ___ जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है श्वास । जीवन में श्वास से महत्त्वपूर्ण कुछ भी नहीं। अगर हम श्वास को देखना सीखें तो आदत भी बदल सकती है और गुस्सा भी कम हो सकता है। सुखमय और आनंदमय जीने के लिए श्वास को देखना, श्वास कैसे लेना? यह सीखना भी जरूरी है। श्वास-प्रेक्षा करे । श्वास प्रेक्षा का मतलब श्वास के प्रति जागरुकता, श्वास को देखना । आचार्य महाप्रज्ञजी कहते हैं, जो व्यक्ति श्वास के प्रति नहीं जागता वह व्यक्ति जागृति की चाबी नहीं घुमा सकता । इसलिए, श्वास को देखना जरूरी है। श्वास और हमारे भाव का गहरा संबंध है। गुस्सा आता है, उत्तेजना आती है, तो श्वास छोटा हो जाता है। श्वास की गति बढ़ती है। इसलिए, दीर्घ श्वास का प्रयोग करें। दीर्घश्वास का प्रयोग * चित्त को नाभि पर केन्द्रित करें। श्वास की गति को मंद करें। धीरे-धीरे लंबा श्वास ले और लम्बी श्वास छोड़ें। चित्त को नाभि पर केन्द्रित करें। श्वास लेते समय पेट की मांसपेशियाँ फूलती हैं। श्वास छोड़ते समय सिकुड़ती हैं। पेट की मांसपेशियों को फूलने और सिकुड़ने का अनुभव करें। प्रत्येक श्वास की जानकारी बनी रहे। चित्त को नाभि से हटाकर दोनों नथुनों के भीतर सन्धि स्थान पर केन्द्रित करें। दीर्घश्वास चालू रखते हुए आते-जाते प्रत्येक श्वास का अनुभव करें। दीर्घश्वास प्रेक्षा के लाभ: एकाग्रता व जागरुकता बढ़ती है ज्ञाता-दृष्टा भाव बढ़ता है। विचार कम आते हैं। पाचन तंत्र को लाभ पहुँचता है। * स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है। * * * जीवन सुखमय, आनंदमय और सफल बनाना है तो, सोचकर सीखो जीना, तभी मार्ग पाओगे। सीखलोsss जीना तभी तो, सच्चा सुख पाओगेश *
SR No.009544
Book TitleAao Jeena Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2006
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size6 MB
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