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________________ आदेश आप्यो हतो एम आगळ जणावी गया छीए. केवळ मोजशोख अने विविध शहेरोनी शोभा निहाळवामां ज तीर्थयात्रानुं कर्तव्य पूर्ण थाय छे एवो भ्रामक व्यवहार आजना समयमां जोवामां आवे छे पण साची रीते ते मान्यता बराबर नथी. जैन अने हिन्दुधर्मोमां यात्राविधिनां स्वतंत्र प्रकरणो लखायां छे, जेमां यात्रिके पाळवाना नियमो व्रतो, दानो अने आचारधर्मोनुं खास शिक्षण आपवामां आव्युं छे. पण जैन धर्मशास्त्र तो तेथी पण आगळ वधी तीर्थयात्रा करवा जतां पोतानी साथे हजारो मनुष्योने लई मोटो संघ काढी ससंघ यात्रा करवानुं अद्वितीय माहात्म्य रजू करे छे. आवी उदात्त भावनानुं दर्शन जैन धर्मना जनकल्याणकारी उन्नत विचारोने यशकलगी अपावे छे. कारण तेमां संघपति पोताना खर्चे हजारो मानवोने तीर्थयात्रानो अमूल्य ल्हावो लेवरावी अक्षय पुण्यनी ल्हाण आपे छे. आ उपरांत आवी ससमूह संघयात्राना विधायके पाळवाना नियमो, व्रतो, दानो अने आचारधर्मोने असिधाराव्रतनी माफक चुस्तपणे पाळवानो आदेश जैन शास्त्रो आपे छे. अने ते प्रमाणे व्रताचरण करनारने ज संघपति बिरुद आपवानुं धर्मशास्त्रो कहे छे. तेमां जणावेला संघपतिना धर्मो एक साचा आत्मसंन्यास ग्रहण करनार योगीने अनुरूप छे. एमां लोककल्याणनी उदात्त भावनाओ ठेर ठेर जोवामां आवे छे. विजयसेनसूरिये तीर्थयात्राविधि अने संघपतिनां कर्तव्योने विस्तृत रीते आ ग्रन्थमां आलेखतां कर्तुं छे के-संघपतिपणुं अत्यंत दुर्लभ छे. जे मनुष्य संघपति बनी तीर्थाभिवंदन करे छे तेने धन्य छे. पूर्वना पुण्ययोगे आत्मउद्धारक संघपतिपणुं प्राप्त थाय छे. संघपतिए सौथी प्रथम गुरुनी आज्ञा लई पूर्ण उत्साह साथे संघप्रस्थान- मुहूर्त नक्की करवं. पोतानी साथे संघयात्रामां आववा माटे साधर्मिकोने बहुमानपुरःसर आमंत्रणपत्रिकाओ मोकलवी. तेमने वाहन वगेरेनी व्यवस्था करी आपवी. जलोपकरण, छत्र, दीपधारण करनारा (मशालचीयो), धान्य, वैद्य, दवाखानु, चंदन, अगर, कपूर, केसर, वस्त्र वगेरे मार्गमां उपयोगी तेम ज जिनार्चनादिमां उपयोगी सामग्री तैयार करी साथे लेवी. शुभ मुहूर्ते पोताना इष्टदेवने पुण्यपवित्र तीर्थजळ वडे स्नान करावी तेमनी विविध उपचारो वडे पूजा रचवी तेनी सामे बेसी गुरूपदेश प्रमाणे संघपतिदीक्षाने ग्रहण करवी. दिक्पाळोने मंत्र साथे बलिप्रदान करवं अने पुष्प, वस्त्रो, तथा मंत्रादिक वडे पूजित रथमां प्रभुने पोते पधराववा. गुरुने आगळ करी ससंघ चैत्यवंदन करवू. क्षुद्रोपद्रवोनो नाश करवा कवच, मंत्र, अस्त्रप्रयोगो वगेरेने गुरुसन्निध अभिमंत्रण करी साथे राखवा अने जयध्वनि मंगलध्वनि करता वाजते गाजते शहेरमांथी नीकळी नगरनी नजदीकमां ज मंगलप्रस्थान कर. पछी विविध स्थानोथी यात्रा करवा माटे आवता साधर्मिकोने धन, वाहन, वगेरेनी सहाय आपी सत्कार करवो. साथे आवेला बंदी (भाट, चारण वगेरे), गायक (गायन-स्तवन करनारा) अने महात्माओने वस्त्र, भोज्य, द्रव्य वगेरेथी सत्कारवा. मार्गमां आवतां चैत्यो, पूजन कर, अने खंडित होय तेनो जीर्णोद्धार कराववो. चैत्य वगेरेनो वहीवट करनार साधर्मिको, वात्सल्य अने वहीवटनी तपास
SR No.009540
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages515
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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