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________________ करवी. दीनोने दान अने भयवाळाओने अभयप्रदान आपी बंदी (केदी) मनुष्योने बंधनमुक्त करवा. पंकमग्न (कादवमां खुंची गएलां) शकटो (गाडाओ) ने बहार कढाववा, भांगी गयां होय तेने पोताना शिल्पीओ पासे तैयार कराववां. क्षुधितोने अन्न, तृषितोने जळ, व्याधिग्रस्तोने औषध, अने श्रमनि:सहोने वाहन वगेरेनो बंदोबस्त करी आपवो. पोते ब्रह्मचर्य, तप, शम वगेरे धर्मोनुं यथोक्त पालन कर. क्रम प्रमाणे आवतां तीर्थोमांथी पुष्पाधिवासित पवित्र जळना घडाओ भरी लेवा अने त्रैलोक्यपति जिनभगवाननो स्नात्रपूजामहोत्सव रचवो. तेवा महोत्सवोमां दुध, दहीं, कर्पूर वडे पंचामृत स्नात्र अवश्य कर. प्रभुने चंदन, कपूर, कस्तूरी वगेरे, विलेपन करनु, स्वर्णाभरण, पुष्पमाळा अने वस्त्रादिक पदार्थो अर्पण करी अगरु, चंदन आदि सुगंधि द्रव्योनो धूप आपवो. कर्पूरनी आरात्रिक करी पुष्पांजलि अर्पवी अने विविध साधन सामग्री साथे चैत्यवंदन-देववंदन करवं. मालाधारण अने मुखोद्घाटन महोत्सव वखते देवद्रव्यनी वृद्धि माटे तेमां स्वशक्त्यनुसार द्रव्य कोशागारमा अर्पण करवू अने गद्गद्वाणी वडे दीनता दर्शावी प्रभुनुं अंत:करणपूर्वक शुद्ध भावथी स्तवन करवू. आम प्रभुना पूजन अर्चन कार्यो करतां तीर्थयात्रा करी तीर्थाधिराजनुं ध्यान करतां करतां शुभ मुहूर्ते नगरप्रवेश करवो अने प्रभुने घेर पधराववा. घेर आवीने धर्मबंधुओ, मित्रवर्यो पौरजनो सहित श्रीसंघD भोजनादि वडे साधर्मिकवात्सल्य करवू. सूरिश्री वधुमां कहे छे के-संघपूजा ए महादान छे अने ए भावयज्ञ गणाय छे. परोपकार, ब्रह्मव्रताचरण, यथाशक्ति तप अने अनाथोने दान ए चार महास्थानोनी पुण्यानुबंधी पुण्यलक्ष्मीने संघपतिए आराधवी जोईए. जे भव्य मनुष्य उपर्युक्त प्रकारे व्रतनियमसहित ससंघ तीर्थयात्रा करे छे ते सौभाग्य अने भाग्यवानने संघपतित्वरूप लक्ष्मी पोते ज वरे छे. तीर्थयात्रा- आवं अद्भुत वर्णन पुण्ययशोभिवृद्धि माटे कोने आकर्षतुं नथी ? आवा ज वर्णनो 'ज्ञाताधर्मकथा,' 'व्यवहारसूत्र' अने बीजां अनेक जैन धर्मशास्त्रोमां लखायां छे. तेमांथी मनुष्य स्वकर्तव्यना पाठ शीखी शके छे. एटलुं ज नहीं पण जनकल्याणकारी उदात्त भावनाना सचोट पुरावाओ पूरा पाडे छे. वस्तुपाले आवं ज संघपतिव्रत धारण कयें हतं जेनी सविस्तर आलोचना हवे पछी करवामां आवनार छे. ६. प्राक्कालीन संघपतिओ अने यात्रिको ससंघ यात्रा करवी, तेने उचित धर्मो आचरवा, पोतानी सल्लक्ष्मी उपरनो मिथ्यामोह त्याग करी तेने आवा सत्कार्योमां नियोजवी ए एक दुष्कर कार्य छे. तेमां तप, दान, दया, औदार्य, श्रद्धा अने दीनता वगेरे उत्तम गुणोने खास करीने पचाववा पडे छे. आपणा पंचमहाभौतिक शरीरमा रहेला षड्रिपुओ (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद अने मत्सर) उपर्युक्त गणावेला सात्त्विक गुणोना दुश्मनो छे. आजना भौतिक वादमां ते षड्रिपुओने परास्त करवा ए
SR No.009540
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages515
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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