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________________ २९ छे, अने इन्द्रासनमा बोराजमान इन्द्र ते भाव इन्द्र, ते भाव निक्षेपारूप छे, ते पर्यायार्थिक नयमां समाय छे, कारण के भाव इन्द्रमां वर्तमानमां इन्द्रपदना अनुभवनी - लिंग वचनना भेदनी, - व्युत्पत्ति भेदनी अने क्रियाकालनी आ बधी विशेषताओं होवाथी विशेषताने लई भेद ज मुख्य छे. ॥ उत्पत्ति स्थिति अने नाशरूप पदार्थलक्षणमां द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नयविचरणा ।। उत्पत्ति स्थिति अने नाश ए पदार्थनुं लक्षण छे 'उपाय - डिइ भंगा हंदि दवियलक्खणं, द्रव्यास्तिक नयनो विषय सामान्य छे। अने पर्यार्यास्तिक नयनो विषय विशेष छे, जगत्ना कोई पण पदार्थमां विशेष विनानुं सामान्य नथी अने सामान्य विनानुं विशेष नथी. तेज रीते उत्पत्ति अने नाश-स्थिति विनानां नथी, अने स्थिति - उत्पत्ति अने नाश विनानां नथी, आथी पदार्थ मात्रमां द्रव्यार्थिक अने पर्यायार्थिक बन्ने घटी शके छे, छतां द्रव्यास्तिकनुं वक्तव्य पर्यायार्थिकनी दृष्टिमां अवस्तु छे, अने पर्यायार्थिकनुं वक्तव्य द्रव्यास्तिकनी दृष्टिमां अवस्तु छे, केमके द्रव्यास्तिक अभेद तरफ ढळे छे, अने पर्यायास्तिक भेद तरफ ढळे छे, उत्पत्ति स्थिति अने नाश त्रणेनुं भिन्न स्वरूप छतां एक बीजा साथे मलीने रहे छे, तेम द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक बन्ने नयोनुं भिन्न स्वरूप होवा छतां बन्ने दृष्टि पदार्थ प्रतिपादनमां वराय त्यारेज पदार्थनं साधुं प्रतिपादन गणाय. आ बन्ने दृष्टि सापेक्षपणे प्रवर्ते त्यां सुधी नय छे. निरपेक्षपणे प्रवर्ते त्यारे ते दुर्नय बने छे. अने आ दुर्नय ते मिथ्यात्व छे. द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक अने तेना पेटा भेदो आ बधा नयो पोत पोताना विषयनी मर्यादामा रही प्रवृत्ति करे त्यां सुधी नय छे, अने ते सर्व अपेक्षा पूर्वक वस्तुगत एक अंशप्रतिपादक होवाथी सम्यक् नय छे, पण ज्यारे ते प्रतिपक्षनयनुं खंडन करे त्यारे ते मिथ्या नय छे, हाथीनो एक अवयव पग थांभला जेवो देखी हाथी थांभला जेवो छे ते कहे त्यां सुधी ते न साचो छे. एटले सुनय छे, पण हाथी थांभला जेवोज छे, दोरडा जेवो नथी, ते कहेनारा जुठा छे, तेम कहेनारलुं एकान्त वचन दुर्नय छे, कोइपण माणस जेम स्त्रपुत्रनो पिता ते स्वपितानो पुत्र - बीजा पुरुषनो मामो काको भत्रीजो पण होइ शके छे, आ वस्तुस्थिति समज्या विना विद्यमान एवा बीजा धर्मनो निषेध करी केवल एकज धर्मप्रतिपादक पुरुषं निरपेक्ष वचन - एकान्त वचन दुर्नय छे, बीजा धर्मनुं खण्डन मण्डन करवामां उदासीन भावपूर्वक एक धर्मप्रतिपादक पुरुषनुं सापेक्ष वचन सुनय छे. कमां द्रव्यास्तिकनुं वक्तव्य भेदरहित अभेद छे, अने पर्यायास्तिकनुं वक्तव्य अभेदरहित भेद छे, अने ते वक्तव्य भेद थाय त्यांथी शरु थाय छे. "Aho Shrutgyanam"
SR No.009536
Book TitleSammatitarka Maharnavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydarshansuri
PublisherJainmarg Prabhavaka Sabha Madras
Publication Year
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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