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________________ भेद तरफ वळेली आ दृष्टि ज्यारे काळकृत भेदमा प्रवेशे छे. अने भूत भविष्यकाळने कार्यनो असाधक मानी वर्तमानकाळ पुरतुं ज तत्त्वने स्वीकारे छे. त्यारे ते ऋजुसूत्रनयनी मर्यादामां आवे छे, आ ऋजुसूत्रनयथी पर्यायाथिक नयनी शरुआत थाय छे, ते एवंभूत सुधी लंबाय छ, ऋजुसूत्र नयना मानेल वर्तमानकालीन तत्वमां पण लिंग वचन पुरुष आदि भेदे भेद माननार दृष्टि शब्दनय बने छे, अने शब्दनये मानेल समाज लिंग अने समान वचनवाळा पर्यायशब्दोमां पण व्युत्पत्ति भेदे भिन्नअर्थ माननार दृष्टि ते समभिरूढ नय छे, अने व्युत्पत्तिथी मेद स्वीकारेल पदार्थ पण क्रिया काल पुरतो ज सत् छे एम माननार भेद दृष्टि ते एवंभूत नय छे. आ शब्द समभिरूढ अने एवंभूत त्रणे वास्तविक जोइए तो ऋजुमूत्र वृक्षनी शाखाओ छे, ऋजुसूत्र शब्द समभिरुढ अने एवंभूत आ चार नयो पर्यायार्थिक नयमां समाय छे. ___ आम द्रव्याथिक नयमां संग्रह अने व्यवहार पक्षान्तरे नैगम सङ्ग्रह अने व्यवहार समाय छे. पर्यायार्थिक नयमां ऋजुसूत्र शब्द समभिरूढ अने एवंभूत समाय छे. जेमां कोई पण विशेष न होय तेवु वचन ते सत्-अस्ति छे, अने आ प्रमाणे माननार शुद्ध द्रव्यास्तिक नय छे, अने जेमां कोई पण सामान्य न होइ एवं छेल्लु अविभाज्य विशेष वाचक वचन ते शुद्ध पर्यायास्तिक नय छे. आ बन्नेनी वच्चे आवनार बधा विभागो सामान्य विशेषनां प्रतिपादक होवाथी द्रव्यार्थिक अने पर्यायार्थिक मिश्रित छे. सत् अस्ति आ शुद्ध द्रव्यास्तिक अने जीव मुक्त संसारी-अजीव परमाणु स्कन्ध गुण आ वधा मर्यादित सामान्यना बोधक साथे तेमा विशेषनो-विभागनो अने भेदनो स्पर्श होवाथी द्रव्यास्तिक पर्यायास्तिक कहेवाय छे. अने छेल्लो अविभाज्य विशेषवाळो पदार्थ एक व्यक्ति निष्ठ ते शुद्ध पर्यायार्थिक छे. अंतिम विशेष सिवायनो बधी वस्तुओ अनुक्रमे सर्वव्यापक सत्ता सामान्य सुधीमा सामान्य उपयोग थतो होवाथी द्रव्यास्तिकनयनो विषय छे. अने एज पधा विषय पर्यायाक्रांत होवाथी पर्यायास्तिकनयने पण ग्राह्य बने छे. मात्र अंतिम विशेषमा सामान्य उपयोग नथी. अने सर्वव्यापक सत्ता सामान्यमा विशेष उपयोग नथी. ॥ चार निक्षेपामा द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिकनयनी विचारणा ॥ नाम स्थापना द्रव्य अने भाव आ चार निक्षेपामां नाम स्थापना अने द्रव्य आ त्रण निक्षेपा सुधी द्रव्याथिक नयनी प्रवृत्ति छे. नाम मात्रथी इन्द्र होय ते नाम इन्द्र, इन्द्रनुं चित्र होय ते स्थापना इन्द्र, भविष्यमा इन्द्र थनार होय अगर पहेला इन्द्र हतो ते द्रव्य इन्द्र, आत्रणे निक्षेपामां कोईने कोई जातनो द्रव्य साथे संबंध होवाथी द्रव्यास्तिक नयना विषयमा समाय "Aho Shrutgyanam"
SR No.009536
Book TitleSammatitarka Maharnavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydarshansuri
PublisherJainmarg Prabhavaka Sabha Madras
Publication Year
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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