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________________ २४ शिष्य प्रशिष्य परिवार - पू. टीकाकार दर्शनसरि महाराज स्वर्गस्थ गुरुदेवना विद्वान् नव आचार्योमा प्रथम आचार्य, विद्वान् अने प्रतिभासंपन्न महात्मा छे. एमना एक गुणविजय नामना विद्वान् शिष्य हता. ते वि.सं. १९८१ मां काळधर्म पाम्या तेमणे हेम धातुमाला बनायुं हतुं. एमज तेमने पू. पं. जयानंद विजयजी महाराज, पू. पं. प्रियंकरविजयजी महाराज विगेरे सारा विद्वान् शिष्यो छे. जयानंद विजयजी बुद्धिवैभवी अने न्यायशास्त्रना उंडा अभ्यासी छे जे टीकाकार महाराजनी साथ हमेशा रहे छे. अने तेमनी साहित्यपद्धतिमां हंमेशां मददनीश रहे छे पू. पं. प्रियंकरविजयजी पण सारा उपदेशक अने साहित्यशास्त्रना सारा बोधक छे. टीकाकार व्यक्तित्व अने स्थान पू. आ. दर्शनसूरिजी महाराज न्याय, साहित्य अने धर्मशास्त्रना समर्थ विद्वान् होवा छतां महाकाय प्राचीन अने नव्य न्यायग्रंथोमां निर्माण करनार अने प्रकाण्ड विद्वान् अभ्यासी छे. जैनसमाजमा आजे जे सारा गणाता विद्वानो छे तेमां तेओ अग्रेसर गणनापात्र विद्वान् छे. अने न्यायशास्त्रमां ते प्रथम पंक्तिना महा विद्वान् छे. उ. यशोविजयजी म. पछी सन्मतितर्कना अभ्यासीओ जैनसमाजमां विरलज थया छे, प. पू. आचार्यदेव विजयनेमिसूरीश्वर महाराजे तेमना शिष्य मंडळने जुदा जुदा शास्त्रोना पारंगामी बनाव्या तेमां दर्शनसरि महाराज दर्शनशास्त्रमां खुबज उंडा उतर्या एटलुंज नहि पण खंडनखाद्य तत्वार्थ विवरण प्रथमाध्याय महाराज अने संमतितर्क जेवा ग्रंथो उपर वृत्ति रची पूर्वकाळना विद्वानोनी स्मृति करावी छे. सन्मतिमर्क ग्रंथ अनेकांत दृष्टिनो मौलिक ग्रंथ छे. आ मूळ ग्रंथ अभ्यासकोने समजाय तेत्रो हृदयंगम छे. आम छतां तेना उपरनी महाकाय वृत्ति देखी केलाये वांचको तेने नमस्कार करी तेनी प्रत्ये छेटेथी पूज्यता बतायी छे. पण तेने अवगाहवानी वृत्ति केळवी शक्या नथी. आ सन्मतितर्क महार्णवावतारिका सर्व अभ्यासीओने ग्रंथमां उतरवा सोपान पंक्ति बांधनार वृत्तिकारे आजना अभ्यासको उपर महान् उपकार कर्यो छे. अने सेंकडो वर्षथी सन्मतितर्क माटेनी जोइती मध्यम वृत्तिनी खोट पुरी पाडी छे. पू. आ. दर्शनरि महाराज विद्यमान आचार्योंमां गणनापात्र आचार्य छे. विद्यमान विद्वानोमा न्यायना प्रथम पंक्तिना महा विद्वान तथा स्वपरशास्त्रना मननपूर्वक यथार्थ जाणकार होवाथी अने मारा तारानी झंझटथी पर रहेनार अने सदा पठनपाठनमा उद्यत रहेनार निरीह महात्मा तरीके प्रसिद्ध छे. आ ग्रंथने सुंदर लेजर पेपरमां सुवाच्य अक्षरोमां छपावी प्रसिद्ध कर्यो छे तो वांचक दर्शन शास्त्रो अभ्यास करी समकित निर्मल करी दर्शननी प्रभावना करे. एज. मफतलाल झवेरचंद गांधी. " Aho Shrutgyanam"
SR No.009536
Book TitleSammatitarka Maharnavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydarshansuri
PublisherJainmarg Prabhavaka Sabha Madras
Publication Year
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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