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________________ संमति तर्क रहस्य. लेखक पं. श्री जयानंद विजयजी गणि । सुगृहीत नामधेय पूज्यपाद आचार्य वर्य श्री सिद्धसेनदिवाकरसार प्रणीत संमतितर्क मूळ ग्रंथण कांडमा विभक्त करायेल छे. प्रथमकांड ५४ गाथा प्रमाण छे. द्वितीयकांड ४३ गाथा प्रमाण छे. अने तृतीयकांड ६९-७० प्रमाण है. आम मूळ ग्रंथ १६७ पद्योनो छे. संमति तर्क प्रकरण मूळ ग्रंथ आम अल्पकाय होवा छतां आ ग्रंथ जैनशासनमां अद्वितीय प्रभाचक ग्रंथ गणायो छे, अने आ प्रभावक ग्रंथ भणवा माटे साधु कारणवश आधाकर्मि आहार सेवन करे तो पण तेने प्रायश्चित्तनो भागी गण्यो नथी. तत्त्वार्थ तथा सम्मतितर्क भगवामां अखण्ड रंग लागे तो ते ग्रन्थनानिरन्तर एकचित्ते अभ्यासीने आधाकर्मादि दोष लागतो नथी तेम पञ्चकल्पादि ग्रन्थमां पण क छे. तेनुं कारण संमति प्रकरणमां नय-निक्षेप सप्तभंगी ज्ञान अज्ञेयनी विशद युक्तिपूर्ण विचारणा करी अनेकांतवादने प्रतिष्ठापित कर्यो छे. आ संमति प्रकरण उपर शासन शिरोमणिप. पू. नवांगीटोकाकार भगवन्त श्री अभयदेवसूरि महाराजनी रचेल २५००० श्लोक प्रमाण तत्त्वावबोधविधायिनी नामनी वृत्ति छे. परंतु आ वृत्ति जैनशासनमा 'वाद महार्णव'ना नामे ज प्रसिद्ध छे. केमके तेमां पूज्यपाद अभयदेवसूरि महाराजना वखत सुधीना जे कोइ वादो हता, तेनो विस्तारपूर्वक विचार करवामां आव्यो छे. आ वादो अतिविस्तृत अने काठिन्यपूर्ण होइ सामान्य अभ्यासी पण अवगाही तेनो परिचय मेळवी शके ते माटे सरळ भाषामां नियुक्त आ वादोमां सहेजे प्रवेश करी शकाय ए हेतुथी संमततिर्कमहार्णवावतारिका नामनो आ थ अमारा पूज्य गुरुमहाराज श्री विजयदर्शनसूरीश्वरजी महाराजाए बनाव्यो छे. आ ग्रंथ निर्माणं मुख्य प्रयोजन संमतितर्कमहार्णत्रमा प्रवेश करतो ते छे. आ ग्रंथ सुगम छतां तेनुं अवगाहन जैनेतरदर्शनसम्बन्धि न्याय ग्रन्थोना तथा जैनतर्कशास्त्रना थोडा घणा परिशीलन विना करी शकाय तेम नथी. हवे जेओने बिलकुल संस्कृत भाषानो परिचय नथी तेओ पण आ ग्रंथर्मा शो विषय छे. तेनुं टुंक दिग्दर्शन पामी शके ते आशयथी मूळ ग्रंथने लक्ष्यमा राखी अहीं ट्रंकमां तेनो निर्देश करवामां आवेल छे. मंगल शरुआतमां शासन प्रभावक आचार्य भगवन्तश्री सिद्धसेन दिवाकरसूरि महाराज शासननी स्तुतिरूप मंगळ करे छे, तेओ आ जैनशासनने चार गुणोवाळं वर्णवे छे. दसणगाही --- दशणनाणप्रभावगाणि सत्थाणि सिद्धिविणिच्छय समतिमादि गेहृतो इत्यादि (निशीथचूर्णि उद्देशक १) "Aho Shrutgyanam"
SR No.009536
Book TitleSammatitarka Maharnavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydarshansuri
PublisherJainmarg Prabhavaka Sabha Madras
Publication Year
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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