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________________ स्वपर न्यायशास्त्रना अनेक ग्रंथोनुं तेमणे अध्ययन कयु. पंचवाद, माधुरी पंचलक्षणी, विवेचना, सिद्धांतलक्षण, वैशेषिकदर्शन उपस्कार, मुक्तावळी दिनकरी रामरुद्री टीकाओ साथे श्रीहर्षकृत खंडखाद्य, व्युत्पत्तिवाद विवेचना सांख्य तत्त्वकौमुदी तत्वसंग्रह, सर्वदर्शनसंग्रह चित्सुखी विगेरे छए दर्शन शास्त्रोद् अध्ययन कयुं आ साथे आपणा पूर्वाचार्यकृत उ-यशोविजयजी कृत न्यायालोक, खंडखाद्य, नयप्रदीप, नयरहस्य विगेरे ग्रंथदशक अष्टसहस्री, संमतितर्क शास्त्रवार्तासमुच्यय वृत्ति आदि अनेक स्वदर्शन शास्त्रनान्याय ग्रंथोनुंमननपूर्वक विशद अध्ययन कयु. आ दर्शनशास्त्रना पूर्ण अभ्यास बाद स्व. पू. गुरुदेवे कह्यं के संमतितर्क उपर तत्त्वावबोधिनी टीका छे. परंतु ते विस्तृत होवाथी सामान्य अभ्यासीओने भणवा माटे बहुज कठीन पडे छे. अने महाकाय ते वृत्तिने देखी सामान्य धीरजवाळा दूर खसे छे. तो सन्मतितर्क उपर एक सुंदर मध्यम वृत्ति बनायो जेथी अनेकने ग्राह्य बने. आ गुरुदेवना गुरुवचनने शिरसा वंधकरी संमतितकनी टीका बनाववानो टीकाकारे संकल्प कर्यो अने तेमना जीवनकाळमांज ते ग्रंथ बनावी ते संकल्प सफळ कों. वि. सं. १९६९ मां कपडवंजमां पू मुनिदर्शनविजयजीने गुरुदेव स्वहस्ते पन्यास पदारुढ कर्या अने सं. १९७३ मां सादडी मामे मारवाडमा उपाध्यायपद अपी तेमने गुरुदेवे उपाध्याय तरीके स्थाप्या. वि. सं. १९७९ मां खंभातमां गुरुदेव भगवंते स्व. पूनित हस्ते आचार्यपद अK आचार्यदारुढ कर्या त्यारथी आचार्य विजयदर्शनसूरिजीना नामे प्रसिद्ध छे. पू आचार्य दर्शनसरि महाराजे आ संमतितर्क ग्रंथ टीका उपरांत आज बीजा पण महाकाय घणा ग्रंथोनुं निर्माण कयुं छे. १ स्याद्वादना स्वरुपने स्पष्ट करतो साडा त्रण हजार श्लोक प्रमाण टीका नव्यन्यायनो स्याद्वादबिन्दु ग्रंथ तेमनी नव्यन्यायनी उंडाणतानो सुंदर परिचय आपे छे. २ प. पू. उपाध्याय यशोविजयजी महाराजना बनावेल महा आकार ग्रंथ खंडखाध अपरनाम महावीर स्तव उपर तेमनु स्वोपज्ञ विवरण छे. आ विवरणने स्पष्ट करती २५००० श्लोक प्रमाण तेमणे टीका रची छे. जे आज दश वर्ष पहेला प्रसिद्ध थइ गई छे. ३ पर्युषणा कल्पलता ८०० श्लोक प्रमाण रची पर्युषण पर्वना आदिना त्रण व्याख्यानोना विषयोनुं अतिविशद निरुपण कयु छे. ४ तत्वार्थ विवरण गुढार्थ दीपिका, आ ग्रंथ टीकाकार महाराजे पू. उपाध्याय यशोविजयजी महाराजे तच्चार्थ सूत्र उपर विवरण रच्युं छे. तेने स्पष्ट करनार छे. आम न्याय व्याकरण अने धर्मशास्त्र विगेरेना टीकाकार उंडा अभ्यासी अने सतत परिश्रमी संयम आचरणमा मस्त रहेनार महात्मा छे. "Aho Shrutgyanam"
SR No.009536
Book TitleSammatitarka Maharnavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydarshansuri
PublisherJainmarg Prabhavaka Sabha Madras
Publication Year
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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