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________________ ( १.२) - तेजवगरनो कठीण, चामडीवालो, लुखो, बालवालो, मांस रहित होय, मणिबन्धना जेवो नीचो, होय ते श्रेष्ट नही, हाथ सर्पनी फणा जेवो होय, बालवगरनो होय, मांसवालो होय, उंचो होय मणिबन्धना चिन्हवालो होय, तो श्रेष्ट समजवो. विना परिश्रम करे पण जेनो हाथ कठीण होय, अनेवचमां उंचो होय, ते पुरुष दानी थाय, अत्यन्त नीचो होय तो कृपण समजवो, . जेना हाथनु तलियु वांकु होय नानु होय, वधारे लांबु होय, तो श्रेष्ट नही, तथा रेखा, भ्रमर, चक्र तथा तुटेलु फुटेलु न होय, तो शुभ समजवु. आंगलिनु स्वरूप. जेना हाथनी आंगलिओ लांबी मांसरहित वेढावाली होय, तथा सुक्ष्म पातली आंगलिओ होय तथा लांबी आंगलिओ होय तथा कोमल होय, तथा परस्पर अन्तर वगरनी होय अने गोल आकारवाली होय, आवी आंगलिओ स्त्रीपुरुषनी होयतो लक्ष्मी पाप्तकरावनारी थाय, जेना हाथनी आंगली अन्तरवाली, मोठी वांकी होय, तेने दरिद्र समजवो, तथा आंगलिना उपरनो भाग जो वांको होय, तो तेने शस्त्रहथियारनो घा लागे, तथा चपटी आंगलि होय तो धूर्त समजवो, तथा अन्तरवाली होय धनरहित, तथा अन्तररहित होय तो धनवान् समजवो, तथा मांस वगर आंगलिना पर्व नाना होय तेने धनरहित समजवो, जेना हाथनी आंगलि विषमांगुलि होय तेने निर्धन. जनी आंगलिनो मध्यभाग परस्पर मलेलो होय ते माणास धनसंचय करणार होय, तथा जेनी आंगलिना मध्य भागमां छिद्र होयतो ते त्यागी थाय. तर्जनीना मध्य भागमां आंगलिनी वचमां छिद्र होय, ते माणासने जन्म थी पेला अंशमां भोजनवखते दुःख थाय, अने धनवान होय तो पण दुःख -थाय. __ मध्यमां तथा अनामिकाना मध्यमां छिद्र होय तो तेने जन्मथी बीजा अंशमां भोजन वखते दुःख थाय, अनामिका तथा कनिष्ठानां मध्य भागमा "Aho Shrutgyanam"
SR No.009535
Book TitleHasta Sajjivanama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherMohanlalji Jain Granthamala Indore
Publication Year
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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