SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ विश्वलोचनकोशः- [ कान्तवर्गकर्कोटकः काद्रवेयप्रभेदे श्रीफलेऽपि च । कलबिङ्को भवेद्रामचटकेऽपि कलिङ्गके ॥ १८३ ॥ काकरूक उलूकेऽश्वे स्त्रीजि तेऽपि दिगम्बरे । दम्मेऽपि काकरूकस्तु त्रिषु भीरुदरिद्रयोः ॥ १८४ ॥ कार्पटिकोऽन्यमर्मज्ञे छात्रे स्यात्कालदेशिनि । कुरबकः पुंसि शोणझिण्टिकाऽम्लानभेदयोः ॥ १८५ ॥ कृकवाकुस्ताम्रचूडे कृकलासे च केकिनि । कोशातकः कचे ज्योत्स्नीपटोल्यां घोषकेऽस्त्रियाम् ।। १८६ ।। कौकुट्टिको दाम्भिके स्याददूरप्रेरितेक्षणे । कौलेयको भवेदिन्द्रे महाकामिकुलीनयोः ॥ १८७ ॥ ग्रामणीभण्डिनाराचोपधाने तु खरालिकः । भवेद्गुणनिकाऽभ्यासे शुन्याङ्के पाठनिश्चये ॥ १८८॥ कर्कोटक-नागविकोष, विल्वका | कृकवाकु-मुर्गा, किरलकांट (गिरवृक्ष, (पुं०) । घट), मीर, (पुं०) कलबिंक-घरमें रहनेवाला चिडा कोशातक-केश, (पुं०)कोशातकी (चिडिया) इन्द्रजव,(पुं) ॥ १८३ ॥ परवल, झिमनीलता या तोरई, काकरूक-उल्लू-पक्षी, अश्व, स्त्रीसे | (स्त्री०) ॥ १८६ ॥ जीताहुवा मनुष्य,नग्न-मनुष्य, दर्भ, | कौकुट्टिक-नजदीकसे देखनेवाला (पुं०) डरपोरजन दरिद्र-जन (त्रि०) | ___ मनुष्य, दंभी-मनुष्य, (पुं) । कौलेयक-इन्द्र, महाकामी-पुरुष, कार्पटिक-अन्यके मर्मको जानने- उत्तम कुलमें होनेवाला,(पुं) १८७ वाला, विद्यार्थी, समयको बताने- खरालिक-ग्राममें मुख्य-मनुष्य, वाला, (पुं०) सिरस-वृक्ष, बाण, तकिया, (पुं०) • कुरबक-भींडी, सोनापाठा,कटसरैया | गुणनिका-अभ्यासकरना,शून्पअंक, और सेवतीका भेद, (पुं० ) पाठका निश्चय, नृत्यकरना, (स्त्री०) ॥ १८५॥ ॥ १८८ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy