SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कचतुर्थकम् । ] भाषाटीकासमेतः । पुमान (लि) लमको भेके मधुकेऽम्बुज खरे । पिकेऽप्यलिपकस्तु स्यात्पिकालिरतहिण्डके ।। १७७ ॥ अथाऽश्मन्तकमुद्धाने मल्लिकाच्छदनेऽपि च । आकालिकं क्षणध्वंस्यन्यकालकृतसम्भवे ॥ १७८ ॥ आकल्पकस्तमोमोहग्रन्थावुत्कलिकामुदोः । विशेष्याखनिकस्तु स्याच्चोरमूषकदंष्ट्रिषु ॥ १७९॥ आक्षेपकस्तु पवनव्याधौ व्याधे च निन्दके । भवेदुत्कलिका हेलोत्कण्ठासलिलबीचिषु ॥ १८० ॥ एडमूकस्त्रिषु ख्यातः शठे वाक्श्रुतिवर्जिते । पुनर्नवाकारवेल्लपर्णासेषु कठिल्लकः || १८१ ॥ कनिष्ठाऽङ्गुलिकानेत्रतारयोस्तु कनीनिका | कपर्दकस्तु भूतेश जटाजूटे वराटके || १८२ ॥ कमल केसर, (पुं० ) अलिपक-कोयल-पक्षी, भौंरा, स्त्री अ (लि) लमक-मेंडक, महुवा वृक्ष, | आक्षेपक-वायु, व्याधि, व्याधा ( हिंसक ), निंदा करनेवाला ॥१७९ ॥ उत्कलिका - क्रीडा, उत्कण्ठा, जलके तरंग, (स्त्री० ) ॥ १८० ॥ एडमूक- शठ, वाणी और कर्णेन्द्रि यसे रहित ( गूँगा ) (पुं०) कठिल्लक-साँठी, करेला, एकशाक या तुलसी (पुं० ) ॥ १८१ ॥ चोर (पुं० ) ।। १७७ ॥ अश्मन्तक- चूल्हा, मल्लिकाका पत्ता, ( न० ) आकालिक - क्षणमात्रमें नष्ट होनेवाला, विनासमय होनेवाला | (पुं० ) ॥ १७८ ॥ आकल्पक - तमोगुण, मोह, ग्रन्थि, उत्कंठा (उसेर) (पुं० ) आखनिक-मिसा, खोदनेवाला मनुष्य, चोर, मूसा ( चूहा ), सूकर (पुं० ) ३१ कानीनिका - कनिष्ठा (सबसे छोटी) उँगली, नेत्रतारा, (स्त्री० ) कपर्दक- शिवका जटाजूट, (पुं० ) ॥ १८२ ॥ कौडी, "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy