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________________ ऋचतुर्थकम् । ] भाषाटीकासमेतः । नृत्यान्तरे त्वप्यथो गोकण्टको गोक्षुरे पुमान् । गवां गमनसम्भूतशुष्कस्थपुटकेऽपि च ॥ १८९ ।। गोकुणिकः केकरे स्यात्पङ्कस्थगव्युपक्षके । गोमेदकः पीतमणौ काकोले पत्रकेऽपि च ॥ १९० ॥ स्मृता घर्घरिका क्षुद्रघण्टिकावाद्यभेदयोः । भृष्टधान्ये सरिद्भेदे तथा वादित्रदण्डके ॥ १९१ ॥ चांडालिकौषधीभेदे गौरीकिंदिरयोरपि ॥ जटारुको जलानूके नागयष्टिपटीरयोः ॥ १९२ ॥ जटारुकस्तथाशाखाहरिणेऽपि तुलाधरे । जर्जरीकस्त्रिषु भवेद्बहुच्छिद्रे जरातुरे ॥ १९३ ॥ जीवन्तिका तु जीवाख्यशाकबन्दागुडूचिषु । जैवातृकः शशिन्यायुष्मति दिव्यौषधे कृशे ॥ १९४ ॥ गोकंटक-गोखरू औषधि, गौवोंके चंडालिका-औषधिविशेष, गौरी, गमनसे उत्पन्न हुवा और सूखा चंडाल वादित्र (बाजा) (स्त्री.) ऊँचानीचा स्थल, (पुं०) ॥१८९॥ जटास्क-जलके स्वभाववाला, नागके गोकुणिक-काणा-मनुष्य, गौके की | आकार एक बेल, खैरका वृक्ष चमें धसनेपर नहीं निकालनेवाला, ! ॥ १९२ ॥ बन्दर, तराजू धारण करनेवाला, (पु.) गोमेटक-पीलीमणि, या स्थावरकाला | जर्जरिक-बहुत छिद्रोंवाला, बुढाविष, काकोली, तेजपात, (पुं०) पासे व्याकुल (पुं० ) ॥ १९३ ॥ ॥ १९०॥ | जीवन्तिका-जीयापोता-शाक, अघर्धरिका-छोटीघंटा, वाद्यविशेष, मरबेल, गिलोय, (स्त्री.) भूनाहुवा धान्य,नदीविशेष (घाघर), जैवातृक-चंद्रमा, वडी आयुवाला वाद्यका दंड ( दाँडा) (स्त्री०) मनुष्य, दिव्य औषध, दुबला॥ १९१॥ मनुष्य, (पुं०)॥ १९४ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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