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________________ विश्वलोचनकोश: ललज्जिह्वः प्रमानुष्ट्रे शुनि हिंस्रेऽभिधेयवत् । शतपर्वा तु दूर्वायां भार्गवस्य च योषिति ॥ १४ ॥ २३६ बपश्चमम् । गोरक्षजम्बूर्गोधूमे तथा गोरक्षतंडुले । धूलीकदम्बस्तिनिशे कदम्बे वरुणद्रुमे ॥ १५ ॥ शृगालजम्बूर्गोडुम्बे कचित्तु बदरीकले ॥ १६ ॥ इति विश्वलोचने बान्तवर्गः ॥ [ भान्तवर्गे -. अथ भान्तवर्गः । भैकम् । भा स्यान्मयूषे शुक्रेऽपि पुंसि पुष्पंधये तु भः । दीप्तौ च स्थानमात्रे भा भं नक्षत्रे भये तु भी ॥ १ ॥ भूर्भुवि स्थानमात्रेऽपि स्त्रियां भवितरि त्रिषु । सम्बुद्धावव्ययं भो स्यात् अथ भान्तवर्ग | भैक 1 भा-किरण (स्त्री० ) भ-शुक्र, भौंरा, ( पुं० ) भा दीप्ति, स्थानमात्र, ( स्त्री० ) नक्षत्र, ( न० ) ' ललजिड़-ऊँट, कुत्ता, (पुं० ) हिं साकरनेवाला, ( त्रि० ) । शतपर्वा - दूब (घास ), शुक्रकी स्त्री, ( स्त्री० ) ॥ १४ ॥ गोरक्षजंबू- गेहूं, गुलसकरी, (पुं० ) धूलीकदंब - तिरिच्छ वृक्ष, कदंब, बरना - वृक्ष, (पुं० ) ॥ १५ ॥ शृगालजंबू - गहूंभा (कटुतुंबी ), बेर, | भी - भय ( स्त्री० ) ॥ १ ॥ ( पुं० ) ॥ १६ ॥ इस प्रकार विश्वलोचनकी भाषाटीका बान्तवर्ग समाप्त हुवा || भू-पृथ्वी, स्थानमात्र, ( स्त्री० ) होनेवाला ( त्रि० ) । भो - संबोधनकरना ( अव्यय ) "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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