SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८४ विश्वलोचनकोशः- [धान्तवर्गउपलब्धिः स्त्रियां प्राप्तिमतिज्ञानेषु लक्षणे । कालस्कन्धस्तमालेऽपि तिन्दुके जीवकद्रुमे ॥ १७ ॥ तीक्ष्णगन्धो मतः शिनौ वचाराजिकयोः स्त्रियाम् । तृणगोधा भवेचित्रकोलके कृकलासके ॥ १८ ॥ परिव्याधः पुमान्नीरवानीरेऽपि द्रुमोत्पले। ब्रह्मबन्धुरधिक्षिप्ते निर्देशेऽब्राह्मणस्य च ॥ ४९॥ महौषधं विषाशुण्ठी शृङ्गवेरे रसोनके । समुन्नद्धः समुद्भूते पण्डितम्मन्यगर्विते ॥ ५० ॥ धपंचमम् । योजनगन्धा तु कस्तूर्या व्याससूसीतयोरपि ॥ ५१ ।। ___इति विश्वलोचने धान्तवर्गः ॥ उपलब्धि -प्राप्ति, बुद्धि, ज्ञान, लक्ष- महौषध-अतीस, सोंठ, अदरक, ण, (स्त्री०) हस्सन, (न०) कालस्कन्ध-तमालवृक्ष, तेंदूका पेड समुन्नद्ध-अच्छी तरह उत्पन्नहुवा, जीवक-वृक्ष, (पुं०)॥ ४७ ॥ नहीं पंडित होनेपर निजको पंडित तीक्ष्णगंध-सहजना, (पुं०) तीक्ष्ण- माननेवाला गर्वित (पुं०)॥ ५० ॥ __ गंधा, बच, राई, (स्त्री.) धपंचम। तृणगोधा-चित्रकंकोल, गिरगट, (स्त्री०) ॥ ४८ ॥ " योजनगंधा-कस्तूरी, व्यासकी माता, परिव्याध-जलवेत, कर्णिकार या सीता, (स्त्री०) ॥५१॥ पांगारा-वृक्ष, (पुं०.) इस प्रकार विश्वलोचनकी भाषाटीकामें ब्रह्मबन्धु-झिडकाहुवा, ब्राह्मण का- धान्तवर्ग समाप्त हुवा ॥ भेद (अधम ), (पुं० ) ॥ ४९ ॥! "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy