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________________ १६० विश्वलोचनकोश: नदीभेदे नदीदिव्यस्त्रीगोवाग्देवतागिरि । सुधासूतिः पुमान्यज्ञे कुरङ्गतिलकेऽपि च ॥ २४३ ॥ सूर्यभक्तो मतो बन्धुजीवे भास्करदैवते । सेनापतिरनीकाधिकृते हैमवतीसुते ॥ २४४ ॥ हिमारातिः खले सूर्येऽनले हैमवती तु या । गौ हरीतकीर्णक्षीरीश्वेतवचासु सा ॥ २४५॥ पंचमम् । स्यादध्यवसितं ज्ञाते गते क्रुद्धेऽपि वेष्टिते । पुंसि श्रीकण्ठवैकुण्ठयज्ञभेदेऽ पराजितः ॥ २४६ ॥ जयन्ती पार्वतीविष्णुक्रान्तासु त्वपराजिता । वाच्यलिङ्गः पिपतिषन्पतनेच्छौ खगे पुमान् ॥ २४७ ॥ टेवलोकितं ख्यातं लोकनाथेऽवलोकितः । उपधूपित आसन्नमरणे परिधूपिते ॥ २४८ ॥ तपंचम | सरस्वती नाम नदी, दिव्यस्त्री, गौ, वाणीकी अधिष्ठात्री देवता, वाणी (ato) सुधासूति-यज्ञ, मृगका तिलक, (पुं०) ॥ २४३ ॥ सूर्यका सूर्यभक्त - दुपहरिया का शाद, उपासक, (पुं० ) सेनापति - सेनाका स्वामी, स्वामिका र्त्तिक, (पुं० ) ॥ २४४ ॥ हिमाराति - ख -खल ( खोटा ), सूर्य, अमि, (पुं० ) हैमवती - पार्वती, हरड़, एकप्रकारकी कटेहली, सफेद बच ( स्त्री० ) ॥ २४५ ॥ [ तान्तवर्गे अध्यवसित - जानाहुवा, गयाहुवा, क्रुद्धहुवा, लपेटा हुवा ( त्रि० ) अपराजित - महादेव, विष्णु, यज्ञभेद, (पुं० ) ॥ २४६ ॥ अपराजिता - देवीभेद, पार्वती, कोयल या विष्णुकान्ता, ( स्त्री० ) पिपतिष (तृ) नू - पड़नेकी इच्छावाला, (त्रि०) पक्षी, (पुं०) ॥२४७॥ अवलोकित-देखाहुवा, (त्रि०) लोकनाथ ( खामी ) ( पुं० ) उपधूपित - नजदीक मृत्युबाला, धूप दियाहुवा ( पुं० ) ॥ २४८ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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