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________________ तषष्ठम् । ] भाषाटीकासमेतः । गणाधिपतिरित्येष पिनाकिनि विनायके । श्वेतायामप्यसौ वाच्यलिङ्गस्तु स्यादनिर्जिते ॥ २४९ ॥ सर्वमुक्तेऽभिनिर्मुक्तः सुप्ते यत्रास्तगो रविः । पृथिवीपतिरित्युक्तो भूपाले ऋषभौषधे ॥ २५० ॥ मूर्धाभिषिक्तः क्षमापाले मन्त्रिणि क्षत्रियेऽपि च । यादसांपतिरम्भोधौ वरुणे यादसांपतिः ॥ २५१ ॥ वसन्तदूतश्तेऽसौ पिकपञ्चमरागयोः । वसन्तदूतीशब्दस्तु पाटलावतिमुक्तके ॥ २५२ ॥ तषष्टम् । अर्द्धपारावतश्चित्रकण्ठे च तित्तिरावपि । समुद्रनवनीतं स्यादमृते च सुधानिधौ ॥ २५३ ।। इति विश्वलोचने तान्तवर्गः ॥ गणाधिपति-महादेव, गणेश, कटे- : वसन्तदूत-आम्र, कोयल, पंचम हली (पुं० ) नहीं जीताहुवा, राग, (पुं०) (त्रि. ) ॥ २४९ ॥ वसन्तदूती-पाढलपुष्य, माधवी-पुअभिनिर्मुक्त-सर्वसे छुटा, जिसके ष्पलता, (स्त्री० ) ॥ २५२ ॥ सूतेहुए सूर्य अस्त होजाय वह, तषष्ट । (पुं०) अर्धपारावत-चित्रकंठ (आधा कथिवीपति-राजा, ऋषभनाम औ- बूतरके समान-पक्षी) तीतर-पक्षीषधि, (पुं० ) ॥ २५० ॥ समुद्रनवनीत-अमृत, चंद्रमा, र्धाभिषिक्त-राजा, मंत्री, क्षत्रिय, (न.)॥ २५३ ॥ (पुं०) इस प्रकार विश्वलोचनकी भाषाटीकामें दिसांपति-समुद्र, वरुण, (पुं०) तान्तवर्ग समाप्त हुवा ॥ ॥२५१ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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