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________________ तचतुर्थम् । ] भाषाटीकासमेतः । वैजयन्ती पताकायां जयन्ती वह्निमन्थयोः । व्यतीपातो योगभेदे महोत्पातेऽपमानने ॥ २३७ ॥ मतः शतधृतिः पाकशासने कमलासने । शुभ्रदन्ती मरुद्दन्ती दन्तिनी सुंदर स्त्रियोः ॥ २३८ ॥ संख्यावान्पण्डिते पुंसि त्रिषु सङ्ख्यायुते मृते । सदागतिर्गन्धवाहे निर्वाणेऽपि सदीश्वरे ॥ २३९॥ समुद्रान्ता त्वनन्तायां कार्पासीपृक्कयोरपि । समुद्धतः समुत्कीर्णेऽप्यविनीते समुद्धतः ॥ २४० ॥ समाघातो वधे युद्धे समाधिस्थे समाहितः । त्रिषु न्यस्तप्रतिज्ञातसंसिद्धे यम आत्मनि ॥ २४१ ॥ समाहितं समाधाने व्यसनेऽपि समाहितम् । सरस्वान्रसिके सिन्धौ नदेऽप्यथ सरस्वती ॥ २४२ ॥ वैजयन्ती - इंद्रके महलकी पताका, जैतपुष्पवृक्ष, अरडों-वृक्ष (स्त्री० ) व्यतीपात-विष्कंभआदियोगों में से ए-: कयोग, महाउत्पात, अपमान (पुं०) ॥ २३७ ॥ शतधृति-- इंद्र, ब्रह्मा, (पुं० ) शुभ्रदन्ती-वायव्यकोणके हस्तीकी हस्तिनी, सुंदर दाँतोवाली स्त्री, ( स्त्री० ) ॥ २३८ ॥ संख्यावान् (वत्) - पंडित, (पुं० ) संख्यावाला, मृतक, (त्रि० ) सदागति - वायु, मुनि या अभि श्रेष्ठ, ईश्वर, ( पुं० ) ॥ २३९ ॥ समुद्रान्ता - जवाँसा, कपास वृक्ष, शाक विशेष ( असवरग ) ( स्त्री० ) समुद्धत-पिछोड़ाहुवा, उद्धत (अनाडी ) पुरुष, ( पुं० ) ॥ २४० ॥ समाघात-मारना, बुद्ध, (पुं०) समाहित-समाधि में स्थित, स्थापनकियाहुवा, प्रतिज्ञाकियाहुवा, अच्छेप्रकार से सिद्ध, धर्मराज, आत्मा, ( त्रि०) २४१ समाहित- समाधान, स्थापनकरना, १५९ (न०) सरस्वान् (वत्) - रसिक, समुद्र, नद: ( पुं० ) सरस्वती - ॥ २४२ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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