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________________ उदकगर्भलक्षणम् (४१). तानेव मासभेदेन दर्शयति माहेत्यादिरिति ॥ इति स्था नासूत्रवृत्तिः ॥ हीर मेघमालायामपि - परिवेष वाय वद्दल संझारागं च इंदधणु होइ । हिम करह गज्ज चिज्जु छंटा गन्भो भणिएहिं ॥ २९८ ॥ जीवेभ्यः पुद्गलाः सूत्रे पृथगेव समीरिताः । तेन केचिदजीवाः स्युर्महावृष्टेश्च हेतवः ॥ २१९ ॥ जलयोनिकजीवादेः सद्भूतिः प्रच्युतिर्यथा । , विचार्यते देशतस्ते तथा ग्रामे च मण्डले ।। २२० ॥ यद्दिनेऽभ्रादिसम्भूतिर्मेघशास्त्रे निरूपिता । यथा सा वृष्टिहेतुः स्यात् तथाभ्रादेः परिच्युतिः ।। २२१ ॥ यदुक्तम् आर्द्रादौ दश क्षाणि ज्येष्ठे शुक्ले निरीक्षयेत् । साभ्रेषु हन्यते वृष्टिर्निरभ्रे वृष्टिरुत्तमा ॥ २२२ ॥ हीरमेघमाला में कहा है कि परिमंडल, वायु, बादल, संध्याराग, इन्द्रधनुष, करह (ओला), गर्जना, विजली और जल के छींटे ये दश गर्भ के लक्षण जानना ॥ २९८ ॥ आगम में जीवों से पुद्गल पृथक् ही माने हैं, इस लिये कितनैक पुद्गल महावृष्टि के कारण हैं ॥ २१६ ॥ जैसे - जलयोनि के जीवों की उत्पत्ति और विनाश का विचार करते हैं, वैसे समग्र देश गाँव (नगर) और देश का भी विचार करना चाहिये ॥ २२० ॥ जिस दिन बादल की उत्पत्ति मेवशास्त्र में कही है, वह जैसे वृष्टि के हेतु है वैसे बद्दल के नाशक भी है ।। २२१ || कहा है कि आर्द्रा आदि दश नक्षत्र ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में देखने चाहिये, यदि वे बद्दल सहित देख पड़े तो वृष्टि के नाशक है और बादल रहित निर्मल देख पड़े तो उत्तम वृष्टि जानना || २२२ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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