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________________ (४०) मेघमहोदये गर्भाः पार्क नियच्छन्ति यादृशास्तादृशं फलम् ॥२१३॥ हिमं तुहिनं तदेव हिमकं तस्यैते हैमका हिमपातरूपा इत्यर्थः। 'अब्भसंथड' त्ति अभ्रसंस्थितानि मेघेराकाशाच्छादनानीत्यर्थः । नात्यन्तिके शीतोष्णे पश्चानां रूपाणां गर्जितविधुज्जलवाताभ्रलक्षणानां समाहारः पञ्चरूपंतदस्ति येषां ते पश्चरूपिका उदकंगर्भा इति । इह मतान्तरमेवंपौषे समार्गशीर्षे सन्ध्यारागोऽम्बुदाः सपरिवेषाः । नात्यर्थ मार्गशीर्षे शीतं पौषेऽतिहिमपातः ॥२१४॥ मावे प्रबलो वायुस्तुषारकलुषद्युती रविशशाङ्कौ । अतिशीतं सघनस्य च भानोरस्तोदयौ धन्यौ॥२१॥ फाल्गुनमासे रूक्षश्चण्डः पवनोऽभ्रसम्प्लवाः स्निग्धाः। परिवेषाश्च सकलाः कपिलस्ताम्रो रविश्व शुभः ॥२१६|| पवनधनवृष्टियुक्ताश्चत्रे गर्भाः शुभाः सपरिवेषाः । धनपवनसलिलविद्युतस्तनितैश्च हिताय वैशाखे ॥२१७॥ २१३ ॥ मतान्तर से- मागसिर और पौष मास में सन्ध्या रंगवाली हो, और जल के परिमण्डल देख पड़े, मार्गशिर में विशेष शीत ठंड) और पौष में विशेष हिम न पड़े ॥ २१४ ॥ माघ मास में प्रबल वायु वाय, सूर्य चन्द्रमा तुषार से स्वच्छ देख न पड़े, विशेष ठंड पड़े और सूर्य के उदय अस्त में बदल देखने में आवे तो शुभ है ॥ २१५ फाल्गुन मास में रूखा और तेज पवन चले, बहुत स्निग्ध बादल आकाश में चलते देख पड़ें, परिमण्डल भी हो, सूर्य कपिल (भूरा) और रक्त वर्ण का हो तो शुभ है ॥२१६।। चैत मास में पवन बद्दल और वृष्टि के साथ परिमण्डल वाले गर्भ हो तो शुभ है । वैशाख मास में वादल वायु वर्षा विमली और गर्जना वाले गर्भ श्रेय: है ॥ २१७ ॥ ऐसा स्थानांगसूत्र के चतुर्थ स्थानाङ्ग में लिखा हैं । "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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