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________________ (४२) मेघमहोदये एवं देशनिवेशपुद्गलजलप्राण्यादिसंमूर्च्छनाद्, हेतून् प्रागवगम्य सम्यगुदकासारस्य सारस्यदीन् । ब्रूते मेघमहोदयं सविजयं तस्य श्रियो वश्यतामुत्कर्षादिव चारुरूप्यकनकैवर्षन्ति सिद्धिप्रदाः ||२२३ || इति श्रीमेघमहोदये वर्षप्रबोधापरनाम्नि महोपाध्याय श्री मेघ विजयगणिकृते देशाधिकारः ॥ इस प्रकार देश गाँव आदि में पुद्गल जल और प्राणी आदि का संमूर्च्छन से ( स्वाभाविक उत्पत्ति और परिवर्तन से ) प्रथम जल की अच्छी वर्षा के हेतुओं को अच्छी तरह जान करके सफलीभूत मेघ के उदय को जो कहता है, उस को लक्ष्मी आधीन होती है और सुंदर चांदि सोने से सिद्धि कारक वर्षा होती है ॥ २२३ ॥ श्री सौराष्ट्र राष्ट्रान्तरर्गत पादलिप्तपुर निवासिना पण्डितभगवानदासाख्य जैनेन विरचितया मेघमहोदये बालावबोधिन्याऽऽर्यभाषया टीकित: प्रथमो देशाधिकारः । "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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