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________________ मेघ महोदये मासमेकं च वारुण्यं माहेन्द्रं सप्तरात्रिकम् ॥ १६० ॥ पुनः विवेकविलासे (३०) ――― मण्डलेऽग्नेरष्टमा सै- द्वाभ्यां वायव्य के पुनः । मासेन वारुणे सप्त-रात्रान्माहेन्द्रके फलम् ॥ १६९ ॥ रुद्रदेवः प्राह - वायव्यं मासयुग्मेन माहेन्द्रं सप्तरात्रिकम् । आग्नेयमर्द्धमासेन वारुणं शीघ्रवारिदम् ॥ १६२ ॥ वारुणाग्नेययो भौमानिलयोः फलमन्दता । अन्योऽन्यमभिघातेन तद्विमृश्य वदेत् फलम् ॥ १६३ ॥ भूमिकम्परजोवर्ष दिग्दाहाकालवर्षणम् । इत्याद्याकस्मिकं सर्वमुत्पात इति कीर्त्यते ॥ १६४ ॥ ईत्यनीतिप्रजारोगरगाद्युत्पातजं फलम् । मण्डलाख्यासमं प्रायो वह्निबाष्पादिकं तथा ।। १६५ ॥ रात्रि में माहेन्द्रमण्डल का फल होता है ॥ १६० ॥ विवेकविलास में लिखा है कि-अग्निमण्डल आठ महीने, वायु का दो महीने, वरुण का एक महीना और महेन्द्र का सात दिन, इतने समय मंडलों का फल रहता हैं ॥ १६१ ।। रुद्रदेवने कहा है कि वायु का दो महीने, महेन्द्र का सात दिन, अग्नि का आधा महीना याने पंद्रह दिन और वरुणमण्डल शीघ्र ही जल देने वाला हैं ।। १६२ ॥ वरुण और अग्निमण्डल के मिलने से तथा माहेन्द्र और वायुमण्डल के मिलने से फल की मंदता होती है । ऐसे परस्पर मण्डल के मिल जाने से विचार पूर्वक इन का फल कहना ॥ १६३ ॥ भूमिकंप, धूलि की वर्षा, दिग्दाह, अकाल में वर्षा इत्यादि उपद्रव अकस्मात् हों तो उनको उत्पात कहते हैं ।। १६४ || टीड्डी मूसें आदि के उपद्रव, अनीति, प्रजा को रोग और लडाई ये सब उत्पात के फल जानने चाहिये । प्राय: करके मण्डल के नाम सदृश अग्नि वायु आदि के उस्पात होते हैं ॥ १६५ ॥ अग्निमण्डल में दक्षिण दिशा, वायुमण्डल में "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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