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________________ रिफ चन्द्राकृतिः वक्रोऽलिद्वितये सिंहे शूलाभः कन्यकाद्वये । मीने त्रये दक्षिणोच चन्द्रः शेषे समाकृतिः ॥ २९ ॥ विवरं हि समे चन्द्रे दुर्भिक्षं दक्षिणांनते । व्याविचौरभयं शूले सुभिक्षं चोत्तरोन्नते ॥ ३०॥ (४१) चन्द्रवस्त्रम् + सिंहे मेषइये रक्तः श्यामो मकरकुम्भयोः । तुलाकर्कालिषु श्वेतः पीतः शेषेषु शीतगोः ॥३१॥ - अरुणः शीतल किरणः करोति रसहानिमुग्ररणमर गाम् । " वृश्चिक धन और सिंहका चन्द्रमा कान टेढा, कन्या और तुला का चंद्रमा शूल की समान, मीन मेष और वृषका चन्द्रमा दक्षिण में ऊंचा और शेषराशिका चंद्रमा समान आकृतिवाला होता है ॥२६॥ सम चंद्रमा हो तो विग्रह, दक्षिण में ऊंचा हो तो दुर्लिक्ष, शूल समान हो तो रोग और चोरका भय और उत्तर तरफ ऊं हो तो मुभिक्ष हो ॥ ३० ॥ सिंह मेष और वृष में चंद्राका रक्त वस्त्र, मकर और कुंभ में श्याम (काला), तुला कर्क और दृश्चिक में श्वेत (सफेद) और शेर. शि में पीत व होता है ॥ ३१ ॥ रक्तचंद्र रस की हानि, बड़ा युद्ध और मग करता है । पीला चन्द्रमा रोग, मगरादि का भय और दुष्काल करता है +टी-चन्द्रवस्त्रवाहन - अजवृपविबुसिंह रक्तस्त्रैश्च नागेरलिमषमिथुने स्यात् पीतवस्त्राश्व वारी । तुलधनजलराशिः श्वेतवस्त्रैषा Hetaटककन्या श्यामवस्त्रैर्यमस्य ॥१॥ पुनः- मेत्रे च सिंहे वृषरक्तवस्त्र, कया च मीने धनुपीतवरूम् । तुलालिकर्केषु च श्वेतवस्त्रं युग्मे च कुम्भे मकरेहि श्यामम् ॥ १॥ रक्तवस्त्रे पीतवस्त्रे शुभाशुभम् । तवस्त्रे भवेल्लाभो कृष्णे च मरणं ध्रुवम् ॥२॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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