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________________ मे पीतरोगनियोगं मकरादिभयं पुनः कालः ||३२|| धवलान्मङ्गलधवलैर्गानं सानन्दनं भुवनम् । व्यवसायेऽध्यवसायस्त्रिशायमपि धर्मकर्मजने ॥ ३३ ॥ सूरीन्दुजाङ्गारकसौरिभास्कराः, प्रदक्षिणां यान्ति यदा हिमद्युतेः । तदा सुभिक्षं धनवृद्धिरुत्तमा, विपर्यये धान्यधनक्षयादि ||३४|| दृश्यते यदि न रोहिणीयुनश्चन्द्रमा नभसि तोयदावृते । रुभयं महदुपस्थितं तदा भूश्च भूरि जल संस्य : युना ||३५|| नन्दायां ज्वलितो वह्निः पूर्णायां पांशुपातनम् । भद्रायां गोकुली क्रीडा देशनाशाय जायते ॥ ३६ ॥ यद्दिने गोकुली क्रीडा तद्दिनेऽभ्युदिते विधौ । तदा श्रोणि विनश्यन्ति प्रजा गावो महीपतिः ||३७|| अथ चन्द्रादर्धन् - ॥ ३२ ॥ सफेद चंद्रमा अनेक प्रकार के धवल मंगलादि गीतों से पृथ्वी मानंदित करता है, व्यापार में उत्साह और मनुष्यों में धर्मकर्म अधिक कराता है ॥३३॥ बृहस्पति बुध मंगल शनि और सूर्य ये चंद्रमा के दक्षिण चलें तो सुभिक्ष तथा धन वृद्धि उत्तम हो और विपरीत हो तो धन धान्य आदि का विनाश हो ॥ ३४ ॥ यदि मेव युक्त आकाश में चंदमा रोहिणी सहित न दीखें तो महा रोगभय हो और पृथ्वी जल और धान्य से पूर्ण हो । ३५ ॥ नंदातिथि में प्रकाशमान अग्नि, पूर्णातिथि में धूलि की वर्षा और भद्रातिथिमें गोकुल क्रीडा हो तो देश का विनाश हो ॥ ३६ ॥ जिस दिन गोकुलकीडा हो उस दिन चंद्रमा का उदय हो तो प्रजा गौ और राजाका विनाश हो ॥ ३७ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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