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________________ मेघमहोइये विपदाम्मरण राज्ञां प्रजानां दुःखमुल्वणम् ॥२२॥ देतीन्दुः स्तोकमपि रोहिणीशकट स्पृशन् । सम्पास्सैन्यबला धान्यनाशाविकटसङ्कटम् ॥२३॥ ब्राहया दक्षिण दिगभागे चरन् चन्द्रोऽतिदुःखदः । पाटयेद्रोहिणीमध्यं निशेशः क्लेशकृज्जने ॥२४॥ सूर्यचन्द्रमसौ ब्राहयां द्वितीयायां यदा स्थिती।। दुष्कालेन प्रजाहानिर्यदि वा विग्रहा ग्रहात् ॥२५॥ ऋरवेचे विधुः सौम्ये-दृष्टया ब्रहया उदग्दिशि । परंश्वराचरं विश्वं सुखभाक् कुरु तेजसा ॥२६॥ चन्द्रात् पृष्ठगता ब्राह्मी शुभा पुरोगतापि च । रोहिण्यामिन्दुराग्नेय्या-मुपसोय जायते ॥२७॥ नेत्यामीतिकृवायौ मध्या वृष्टिस्तु वायुनः । उत्तरैशानगश्चन्द्रः सर्वलोकशुभावहः ॥२८॥ इत्यर्घन: संहितायां रोहिणीशव योगः। यदि थोड़ा भी रोहिणी शकट को स्पर्श करता हुआ द्र ॥ उदय होतो. म्यसे सैन्यबलका और धान्धका विनाश ले बड़ा संकट हो ।। २३ ।। यदि चद्रमा रोहिणी के दक्षिण दिशामें रहकर उदय हो तो बहुत दुःखदायक हो और रोहिणी के मध्यमें उदय हो तो जगत् में क्लेशकारक हो ॥२४॥ सीया के दिन सूर्य और चंद्रना दोनों रोहिणी नक्षत्र पर स्थित हो तो दुष्कालते प्रजाका विनाश अथवा वित्रह हो ॥ २५ ।। रोहिणी की उत्तर दिशामें रहा हुमा चंद्रमा कूरग्रह से वेधित हो और शुभग्रह से देखे जाते हो तो चरा. घर जगत् सुखी हो ॥ २६ ॥ चंद्रमा से रोहिणी पीछे या आगे होतो. शु. भकारक है । रोहिणी की अग्नि कोण में चंद्रमा हो तो उपद्रव हो ॥२७॥ नैर्ऋत कोण में हो तो ईति कारक, वायव्य कोण में हो तो वायुसे मध्यम वर्षा, उसर और ईशान की तरफ चंद्रमा हो तो सब लोग सुखी हो ॥ २८॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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