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________________ मेघगर्भलक्षणम् (1231 रोहिणी पूरि नविगले, तो पूरओगभंत॥२१॥ रोहिण्याः शशिनो भोगः कार्तिके वा तदुत्तरे । मासे गोदयायैतद वर्षगे कृत्तिकालयम् ॥२२॥ सूत्रं पुत्कर्षतो गर्भः पाण्मासिको निवेदितः। अधिकस्याविवक्षातस्तत्र सूर्यायुरादिवत* ॥२३॥ याहुल्यनयतो यहा सूत्रं प्रायिकमिष्यताम् । पजादिपाठवत स्व नवमास्यादिवजिने ॥२४॥ : मार्गशीर्षादिपले तु कार्तिके दुष्पसम्भवात् । कता भेदविवक्षान्यै-गर्भाष्टमे व्रतादिवत् ॥२५॥ मादिस वैशाख तक रोहिणी नक्षत्रमें वर्षा न हो तो गर्भ की पूर्ण प्राप्ति जानना ॥ २१॥ कार्तिक और मार्गशीर्षमें चन्द्रमा का रोहिणी नक्षत्रके साथ भोग गर्भका उदय के लिये होता है, वह कृत्तिका आदि दो नक्षत्रों में बरसता है ॥२२॥ प्रायः सूत्रोंमें पागमासिक गर्भ कहा है क्योंकि अधिक की विवक्षा न होनेसे, जैसे सूर्य आदि कां आयुष्य ॥ २३ ॥ अथवा बाहुल्यताके नयसे सूत्रको प्रायिक संज्ञा माना है, जैसे उत्तम स्वप्नोंमें प्रथम गज (हाथी) और जिनेश्वरों की गर्भ नवमासादि स्थिति ॥ २४ ॥ तथा मार्गशीर्षका मादि (कृष्ण) पक्षनें गर्भके पुष्धकालका संभव है उसको कार्तिक मानकर पुष्य या संभव बतलाया, ऐसी अन्य आचार्योने भेदविवक्षा की, जैसे गर्भ से मष्ट वर्षमें यज्ञोपवीत आदि व्रत इत्यादि ॥ २५॥ . .. टी-श्रीभगवत्या लोकपालाधिकारे चन्द्रसूर्ययोरायुः पश्योपनमात्रमुचलक्षसहस्रं वायुरधिकं तस्यापि विक्षणात् । ऋषभे वार्षिकर पोऽधिकं तन्न विवक्षितम् । द्वासततिसमायुरियाज्यधिकं । यथों लोके पत्रः पञ्चशमिसस्तुशिता, मास दशभिर्वर्षमधिकं न विषयते । गयवसह इतिगाथा सर्वत्र परं सर्वाहतां पूर्वगजदर्शनं नास्ति तया. पि माइत्यापाठः । गर्भेऽपि "नवग्रह मासाग बहुपंडिपुत्राण अदमागरायाण" इति पाठः सर्वत्र परसाईतां गर्भस्थितिथानास्ति। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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